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प्रथमः ] भाषाटीकासहितः। (४७) चूर्णको सवा द्रोण दूधमें और उसमें चार प्रस्थ घृत डाले और मन्दर अग्निसे पचावे । पीछे अकरकरा सोंठ, लौंग, गोखरू, केशर, हींगल, सार, अजमायन, मोया, तज, तमालपत्र, इलायची, नागकेशर, कबाबचीनी, बलबीज, वंशलोचन, वंग, मराअभ्रक, दाख ये सब
औषधि बराबर लेवे और इन सब औषधियोंके बराबर सफेद खांड लेवे पीछे पाक बनाकर ८ टंकके अनुमान नित्य खाय और खट्टे
और वादीसे परहेज करे तो वीर्यकी क्षीणता तथा प्रबल प्रमेहवाले मनुष्यके वीर्यकी वृद्धि करे और सब वातके रोग नष्ट होवें ॥ १-५॥
पीपलपाक १-२॥ पिप्पलीप्रस्थमादाय क्षीरं चैव चतुर्गुणम् ।
अद्धीढकं घृतं गव्यं सिता चैव तथाऽऽढकम् ॥ १॥ पचेन्मंदाग्निना सम्यग् यथाभागं भवेत्ततः। शीतीभूते क्षिपेत्तत्र चातुर्जातं पलं पलम् ॥२॥ षोडशपलप्रमाणं खादिरं गुन्दमेव च । पाचितं गव्यहव्येन निक्षिपेत्तस्य मध्यतः॥३॥ योजयेन्मात्रया युक्त्याऽशेषधात्वनिकृन्नृणाम् । बल्यं वृष्यंतथा हृद्यं धातुपुष्टिकरं नृणाम् ॥४॥ जीर्णज्वरक्षयश्वासप्लीहपापरुजापहम् । पिप्पलीनामपाकोऽयं सर्वरोगहरः परः ॥५॥ १-पीपल २५६ टंक लेकर चौगुणे दूधमें औटावे और इसमें गौका दूध ५१२ टंक डाले जब खोवा होजाय तब १०२४ टेक मित्रीकी चासनी कर उसमें खोवाको डालकर पाक बनालेवे, जब कुछ शीतल होजाय इलायची, पत्रज, नागकेशर, तज एक एक पल
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