________________
(१६) योगचिन्तामाणिः। पाकाधिकारःमिरच, नागकेशर, तज. इलायची, जायफल, अकरकरा, ककडीके चीज, वंशलोचन ये सब औषधि ३२ टंक लेवे, सबोंको मिलाकर पाककी विधिसे पाक बनावे यह अमृतके समान है, इसका नित्य सेवन करे तो मूत्रका दाह, मूत्रका रुकजाना, वीर्यके विकार, मूत्रकृच्छू, रुधिरका निकलना, प्रमेह और मधुमेहादिकोंका नाश करता है ॥ १-३ ॥
कौंचपाक। पचेदिप्रस्थं कपिकच्छुबीजमुष्णोदके यामचतुष्टयं तु । तान्धर्षयेद्वस्त्रदृढे सुगाढं यावद्भवेनिर्मलनिस्तुषं च ॥१॥छायाविशुष्कं च तदेव चूर्ण क्षीरं क्षिपेद्रोणसपादशेषम् । दद्याद घृतं प्रस्थयुगं च तस्मिन्विपाचयेन्मन्दहुताशनेन ॥२॥ आकल्लकं नागरदेवपुष्पं गोक्षीरकं कुंकुमहंसपाकम् । सारंकुबेरं धनतुर्यजातं चीणीकबाबाबलबी. जयुक्तम् ॥३॥ वंशोद्भवा वंगमृताभ्रकं च द्राक्षा सिता सर्वसमा प्रदेया। पलार्द्धमानं तु सदैवखादेदम्लं तदन्तः परिवर्जनीयम्॥ ४॥येक्षीणशुकाःप्रबलप्रमेहास्तेषामिदं वीर्यविवर्द्धनं च । पुष्टिं बलं बुद्धिबलं च वृद्ध निहन्ति सर्वानपि वातरोगान् ॥५॥ दो प्रस्थ (५१२ टक) कौंचके बीजोंको चार प्रहर गरम पानीमें औटावे पीछे उनको मोटे वस्त्रमें खूब रगडे जबतक निस्तुप मौर स्वच्छ न होय, पीछे उनको छायामें सुखाकर चूर्ण करे, उस
Aho! Shrutgyanam