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विकार । कफवात अडूसा. नावान, कफविकासान और शहद
' सप्तमः ] भाषाटीकासहितः।
(३०७) खांसी, श्वास, कफकरके युक्त, हृदयरोग, विषपीडित, गलेमें फन्दा पडे, भ्रम, कुष्ठवाले इनको वैद्य वमन करावे । लपसी पीवे और खुब दूध पीवे अथवा मट्टा, दही पीवे और कफकारक चीजोंका भोजन करे फिर वमन करावे । सब क्मन कराने में सैंधानोंन और शहद हितकारी है. पीपल, मैनफल, सैंधानोंन, कफविकारमें गरम जलके साथ देवे । पटोलपत्र, अडूसा. नींबके पत्ते, पित्त विकारमें ठंढे जलके साथ पीवे । कफ वात विकारमें दूधके साथ मैनफल पीवे । अजीर्ण. विकारमें सैंधानिमक गरम जलके साथ पीवे तो वमन होवे और गलेमें पतली अंडकी लकड़ी डालकर वैद्य दमन करावे । पीपल, इन्द्रयव, सैंधानोन, मैनफल इनको शहदमें मिलाकर चटानेसे कफरोगीको वमन होवे खट्टा, मीटा, सैंधानोन तथा मैनपल, नीलाथोथा, कपासकी मांगी अथवा कुत्तंकी बीटसे जिसने विष खाया हो उसे वमन करावे। बहुत वमन करानेसे यह रोग पैदा होते हैं-हिचकी, कण्टमें दरद, बेहोशी और प्यास लगे. इनकी शांतिके अर्थ यह दवा देवे-आमला, निसोत, खस, धानकी खील इनको जलमें मथकरके पिलावे अथवा घी शहद दे तो आराम होवे ॥ १-९॥ . ..
स्वेदः।...
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स्वेदश्चतुर्विधः प्रोक्तस्तापोष्णौ स्वेदसंज्ञितौ । उपनाहो द्रवः स्वेदः सर्वे वातातिहारिणः ॥१॥ पसीना चार तरहसे उत्पन्न होता है-एक तो ताप, दूसरा उष्ण, तीसरा उपनाह, चौथे द्रव. यह चार प्रकारके स्वेद वातके हरने बाले हैं ॥१॥
तेषु तापाभिधः स्वेदो वालुकावस्त्रपाणिभिः। , कपालं कण्टकाङ्गारैर्यथायोग्यं प्रयुज्यते ॥२॥
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