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________________ (२९२) योगचिन्तामणिः। [मिश्राधिकारः · श्वेतकुष्ठे लेपः । गुंजा वचाऽग्निकं कुष्ठं वाकुची कांजिकान्वितम् । सुपिष्टं चूर्णमेतेषां प्रलेपः श्वेतलक्ष्महत् ॥ १ ॥ चिरमिठी, वच, चीता, कूठ, बावची इन सबको कांजीके, पानीमें पीसकर लगानेसे सफेद कुष्ठ दूर होवे ॥ १॥ पामाकण्डूनां लेपः । सिन्दूर मरिचं तुत्थं रसं गन्धं द्विजीरकम् । गोघृतेन समायुक्तं सर्वाः कण्डूर्विनाशयेत ॥१॥ पाग, गन्धक, मिरच, नीलाथोथा, सिन्दूर, दोनों जीरे इनको गौके घीमें मिलाकर लगानेसे संपूर्ण खुजली दूर होवे ॥ १ ॥ पादस्फुटितोपरि लेपः । कनकभुजगवल्लीमालतीपत्रदूर्वारसगदकुनटीभिमर्दितस्तैललिप्तः। अपनयतिरसेन्द्रः कुष्ठकण्डूविचिस्फुटितचरणरन्धं श्यामलत्वं त्वचायाः ॥१॥ धतूरेके बीज, पान, मालतीके पत्ते, दुर्वा, पारा, कूठ, मनसिल, गंधक इनको पीसके तेलमें मर्दन करे तो यह रस कोढ खाज विवाई इनको दूर करे और त्वचा काली होवे ॥ १ ॥ मस्सालेपः। चूर्ण सर्जिकया पृष्टं मसा लेप्यं जलेन वा। तूर्णं नौसादरं चोतं तुत्थकं स्वर्णगैरिकम् ॥ १ ॥ चूना, सज्जी इनको पानीमें घिसकर लेप करै, तो मस्से दूर होवें अथवा नौसादर, चोक, नीला थोथा, लाल गेरू इनको पानीमें घिसकर लेप करनेसे मस्से दूर होवें ॥१॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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