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सप्तमः] भाषाटीकासहितः। (२९१)
कासीस, सैंधानोन, इनको अंडीके तेलमें पीसकर लगानेसे निस्संदेह भगन्दर दूर होवे ॥१॥
कुष्ठे लेपः। गृहधूमं पञ्चलवणं क्षारद्वयचक्रमर्दसलिले च । ब्योषं विषवह्निबृहतीरात्रिद्वयकुष्ठकंपिल्लैः ।। १॥ उपशिलासर्षपसूतक सिंदूरतुत्कासीसैः। गोमूत्रे संपिष्टैः स्नुह्यर्कदुग्धान्वितैर्लेपः ॥ २॥ कुष्ठमपहन्त्यशेषं समुत्थितमण्डलं समुल्लिखति । नाशयति सप्तबाराच्चिरमपि सवर्णयेच्चित्रम् ॥ ३॥ शिलालकोग्रारसताप्यगन्धक कंपिल्लतुत्थोषणसर्जिटंकणम् । कासीसकुष्ठं नवनीतसंयुतं स्त्रवत्सु कुष्ठेष्वधिकं प्रशस्तम् ॥४॥ घरका धुआं पांचों नोन, सज्जीखार, पमाडके, वीज इन सबको पानीमें पीसकर लेप करनेसे कोढ दूर होता है अथवा सोंठ, मिरच, पीपल, तेलिया मीठा, चीता, कटेरी, दोनों हलदी, कूठ, कवीला इनका लेप करनेसे कोढ जाय. वच, मनसिल, हरताल, सरसों, पारा. नीलाथोथा, कसीस इनको गोमूत्र वा थूहरके दूध अथवा आफके दूधमें पीसकर लेप करनेसे अठारह प्रकारके कोढ तथा मंडल दूर होते हैं तथा चर्मरोग भी दूर होवे और सात वार लगानेसे पुराना कोढको नाशकर समान वर्णकर देता है यह आश्चर्य है । मनसिल, हरताल, वच, पारा, गंधक, कबीला, नीलाथोथा, मिरच, सज्जी, सुहागा, कसीस, कूठ, इनको माखनके साथ लगानेसे बहता हुआ कोढ (गलितकुष्ठ ) दूर होवे ॥ १-४॥
कोट दूर होता हलदी,
सो, पारा
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