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________________ ( २८०) योगचिन्तामणिः। [मित्राधिकार: अजादुग्धतिलैलेंपो नवनीतेन संयुतः। शोथमारुष्करं हन्ति लेपश्च कृष्णमार्तिकः ॥५॥ मुलहठी, चन्दन, दूर्वा, नलमूल, पद्माख, खस, नेत्रवाला, कमल इनका लेप करनेसे पित्तकी सूजन दूर होवे । पीपल, पुरानी खल, सहिजनेकी छाल, सफेद सांठी इनको गोमूत्रमें पीस गरम कर लेप करनेसे कफकी सूजन जाय । बकरीका दूध और तिल इनको मक्खनमें मिलाकर लगानेसे भिलावेकी सूजन जाय अथवा काली मिट्टीका लेप करनेसे भी सूजन दूर होती है ॥ ३-५ ॥ शिरो? ले। कुष्ठमैरण्डतैलेन लेपः कांजिकपेषितः । शिरोति वातजा हन्यात् पुष्प वा मुचुकुन्दजम् ॥१॥ देवदारु नतं कुष्ठं नलदं विश्वभेषजम् । सकांजिका स्नेहयुको लेपो वातशिगातेनुत् ॥२॥ धाहकसेरुहीबेरपद्मपद्मकचन्दनैः। दूौशीरनलानां च मूलैः कुर्यात्प्रलेपनम् ॥ ३॥ शिरोति पित्तजां हन्याद्रक्तपित्तरुजस्तथा। हरेणुनतशैलेयमुस्तैलागरुदारुभिः॥४॥ मांसीगनासचुक्रश्च लेपः श्लेष्मशिरोतिनुत् । मरिचं कुष्ठमधुकवचाकृष्णोत्पलैस्तथा ॥५॥ लेपः सकांजिकनेहः सूर्यावर्द्धभेदयोः॥६॥ शुंठीचन्दनमरण्डजटालेपः शिरोतिनुन् । राजिकाभिः सर्षपैश्च शुंब्याऽथ मरिचैरथ ॥७॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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