SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तमः] भाषाटीकासहितः । (२७९ ) कोंको और पेटका अजीर्ण आदि इस जंबीरीद्राव सेवन करनेसे नाश होवे ॥ १-६ ॥ अथ लेपप्रकरणम् । विमर्पा लेपः । शिरीषयष्टीनतचन्दनैलामांसीहरिद्राद्वय कुष्टवालैः । लेपो दशांगः सघृतप्रलेपाद्विसर्पकण्डूत्रणदाहहन्ता । १ ॥ सिरसकी छाल, मुलहठी, तगर, लाल चन्दन, अलुआ, बालछड हल्दी, दारु हलदी, कूठ, नेत्रवाला इन दश चीजोंको घीमें मिलाकर लेप करनेसे खुजली, फोडा, फुनसी, विसर्प, व्रण, दाह आदिका नाश होवे ॥ १ ॥ शोफे लेपः । पुनर्नवा दारु शुण्ठी सिद्वार्थ शिग्रुरेव च । पिट्वा चैवारनालेन प्रलेपः सर्वशोफजित् ॥ १ ॥ बीजपूरजटा हिंस्र | देवदारुमहौषधैः । रास्त्राग्निमन्थलेपोऽयं वातशोथविनाशानः ॥ २ ॥ सांठी की जड. देवदारु, सोंठ, सरसों, सहिजना इनको पीस कांजी में मिलाकर लेप करने से सब प्रकार की सूजन जाय । बिजौरेकी जड, वायविडंग अथवा कटेरी, देवदारु, सोंठ, रास्ना, अरणी, इनका लेप करने से वातकी सूजन जाय ॥ १-२ ॥ मधूकं चन्दनं दूर्वा नलमूलं च पद्मकम् । उशीरं वालकं पद्मं पित्तशोफे प्रलेपनम् ॥ ३ ॥ कृष्णा पुराणपिण्याकं शिशुत्वक्च शतावरी | मूत्रे पिट्वा सुखोष्णोऽयं प्रलेपः श्लेष्मशोफहा ॥ ४ ॥ Shrutgyanant
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy