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सप्तमः]
भाषाटीकासहितः ।
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कोंको और पेटका अजीर्ण आदि इस जंबीरीद्राव सेवन करनेसे नाश होवे ॥ १-६ ॥
अथ लेपप्रकरणम् ।
विमर्पा लेपः ।
शिरीषयष्टीनतचन्दनैलामांसीहरिद्राद्वय कुष्टवालैः । लेपो दशांगः सघृतप्रलेपाद्विसर्पकण्डूत्रणदाहहन्ता । १ ॥
सिरसकी छाल, मुलहठी, तगर, लाल चन्दन, अलुआ, बालछड हल्दी, दारु हलदी, कूठ, नेत्रवाला इन दश चीजोंको घीमें मिलाकर लेप करनेसे खुजली, फोडा, फुनसी, विसर्प, व्रण, दाह आदिका नाश होवे ॥ १ ॥
शोफे लेपः ।
पुनर्नवा दारु शुण्ठी सिद्वार्थ शिग्रुरेव च । पिट्वा चैवारनालेन प्रलेपः सर्वशोफजित् ॥ १ ॥ बीजपूरजटा हिंस्र | देवदारुमहौषधैः । रास्त्राग्निमन्थलेपोऽयं वातशोथविनाशानः ॥ २ ॥
सांठी की जड. देवदारु, सोंठ, सरसों, सहिजना इनको पीस कांजी में मिलाकर लेप करने से सब प्रकार की सूजन जाय । बिजौरेकी जड, वायविडंग अथवा कटेरी, देवदारु, सोंठ, रास्ना, अरणी, इनका लेप करने से वातकी सूजन जाय ॥ १-२ ॥
मधूकं चन्दनं दूर्वा नलमूलं च पद्मकम् । उशीरं वालकं पद्मं पित्तशोफे प्रलेपनम् ॥ ३ ॥ कृष्णा पुराणपिण्याकं शिशुत्वक्च शतावरी | मूत्रे पिट्वा सुखोष्णोऽयं प्रलेपः श्लेष्मशोफहा ॥ ४ ॥
Shrutgyanant