SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्तमः ] भाषाटीकासहितः । ( २८१ ) कुठको अंडीके तेल में या कांजी में पीसकर लेप करनें से वातज शिरकी पीडा दूर होवे, अथवा मुचकुन्द के फूलका लेप करनेसे भी दूर होवे । देवदारु, तगर, कूठ, बालछड, सोंठ इनको कांजी और तेल में मिलाकर लेप करे तो वातज शिग्दरद दूर होवे. आमला, कसेरू, हाऊचेर, कमल, पदमाख, चन्दन दूर्वा, खस, छड, नींबकी जड इनका लेप करनेसे पित्तज शिरदर्द और रक्तपित्तरोग दूर होवे । संभालू, तगर, पाषाणभेद, मोथा, इलायची, अगर, देवदारु, बालछड, istar as इनको लेप करनेसे कफज शिग्दरद नाश होवे । मिरच, कूठ, मुलहठी, चव्य, पीपल इनको कांजी और तेल में पीसकर लेप करे तो आधासीसी और सूर्यावर्त्त जाय, सोंठ, चन्दन, एरंडीकी जड इनके लेपसे भी शिग्दरद जाय । राई, सरसों, सोंठ, मिरच इनके लेपसे भी शिरदरद जावे ॥ १-७ ॥ कर्णपीडायां लेपः । कुष्ठशुंठीच चादारुशताह्वाहिंगुसैन्धवम् । वत्सीत्रभृतं तैलं सर्वकर्णामयापहम् ॥ १ ॥ कूठ, सोंठ, वच, दारूहल्दी, सौंफ हींग, सैंधानोन इनको छियाके मूत्र के साथ कान में डालनेसे कानके सब रोग दूर हो जाँय ॥ १ ॥ उदरपीडायां लेपः । एलीयकं हरिद्रा च स्फटिका नवसादरम् । टङ्कणं धेनुमूत्रेण कोष्णं जठरलेपनम् ॥ १ ॥ एलुआ, हलदी, फटकरी, नौसादर, सुहागा इनको गोमूत्रमें पीस थोडा गरमकर पेटपर लेप करनेसे दरद जाय ॥ १ ॥ शूले लेपः । मदनस्य फलं तिक्तां पिता कांजिकवारिणा । Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy