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________________ सप्तमः ] भाषाटीकासहितः। (२७५) धातुक्षयं जयत्येतत्कासं पंचविधं तथा ॥ ११॥ अर्शासि षट्प्रकाराणि तथाऽष्टाबुदराणि च । प्रमेहं च महाव्याधिमरुचिं पाण्डुतां तथा ॥ १२ ॥ सर्वान्वातांस्तथा शूलं श्वासं छर्दिमसृग्दरम् । अष्टादशैव कुष्ठानि शोफ शूलं भगन्दरम् ॥ १३ ॥ शर्कराचं मूत्रकृच्छ्र मश्मरी च विनाशयेत् । कृशस्य पुष्टिं कृत्वा च पुष्टस्यच महाबलम् ॥ १४॥ महावेगो महातेजा महावेगी महोद्धतः। कामपुष्टिं करोत्येष वन्ध्यानां पुत्रदो भवेत् ॥ १५॥ दशमूल ( शालपर्णी, पृष्ठिपर्णी, दोनों कटेरी, गोखरू, वेल, अरणी, अरलु, खंभारि, पाढ) ५० पल, पोहकर मूल २५ पल, हरड ३८ पल, आंवला १२८ पल, चीता २५ पल, जवासा १२ पल, गिलोय १०० पल, इन्द्रायण ५ पल, खैरसार ८ पल, विजैसार ४ पल, मंजीठ, मुलहठी, कूठ, कैथ, देवदारु, वायविडंग, चव्य, लोध, भारंगी, अष्टवर्ग, (जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, ऋद्धी, वृद्धी ) काला जीरा, पीपल, पठानीलोध, पद्माख, कचूर, प्रियंगु, सारिवा, बालछड, रेणुका, नागकेशर, निसोत, हलदी, राना, मेढासिंगी, सांठी, सौंफ, इन्द्रजौ, मोथा इन सबको प्रत्येक दो दो पल लेवे और इनसे चौगुने पानीमें काढा करे, जब चौथा शेष रहे तब आठ पल मुनका डाले और तीस पल धायके फूल १०० पल गुड, बत्तीस पल शहद सबको मिलाय पुराने चिकने बरतनमें भर दो पल बालछड और दो पल मिरचोंकी धूनी देवे. फिर पीपल, चन्दन, मोथा, जायफल, लौंग, Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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