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________________ (२७६) योगचिन्तामणिः। [मिश्राधिकार:तज, तेजपात, इलायची, नागकेशर इन सब औषधियोंको चार चार टंक, कस्तूरी ४ टंक डालकर पंद्रह दिन जमीनमें गाडदेवे, जब रस शुद्ध हो जाय तब भभकेमें बैंचलेवे फिर निर्मलीके फलका चूर्ण डालनेसे जब निर्मल होजाय, तब पंद्रह दिन पीछे पीवे इसकी मात्रा बलाबल देखकर देवे । यह दशमूलासव धातुक्षय, पांच प्रकारकी खांसी, छः प्रकार की बवासीर, आठ प्रकारके उदररोग, महारोग, प्रमेह, अरुचि, पांडुरोग, सब प्रकारके वातरोग, शूल, श्वास, वमन, प्रदर, अठारह प्रकारका कोढ, सूजन, शूल, भगन्दर, शर्करादि, मूत्रकृच्छ्र, पथरी आदि रोगोंका नाश करे. दुबलेको मोटा करे और पुष्टको महाबल करे. महावेग अति वीर्यवान् अतिबलवान कामोद्दीपन भरनेवाला और वंध्याको पुत्रवती करता है ॥ १.-१५ ॥ कूष्माण्डकासवः। कूष्माण्डं च फलं पकं तस्मिंश्छिद्रं तु कारयेत् । छिद्रमध्ये गुडो देयो द्वितुलश्च शनैः शनैः ॥ १॥ वचं बीजं च उत्कृष्य स्निग्धभाण्डे निधापयेत् । बदरीत्वपलान्यष्टौ तस्य क्वाथं प्रदापयेत् ॥ २॥ द्वौ कसेलौ च धातक्या हपुषा च पलं पलम् । त्रिफला हौहबेर च शृङ्गी भाी च पुष्करं ॥३॥ तालमूली स्वयंगुप्ता ककोलं वंशलोचनम् । यष्टी मोचरसं मुस्ता ग्रंथिकं चाष्टवर्गकम् ॥ ४॥ चातुर्जातं विडङ्गानि व्योष चित्रककुंकुमम् । जातीपत्रं लवङ्गं च करभं मालतीफलम् ॥५॥ दशांघ्रिरक्तसारं च कट्फलं रेणुका सटी। Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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