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________________ भाषाटीकासहितः । ( २६३ ) यामद्वयाज्जारयति प्रसिद्धः । निहन्त्यजीर्णान्यपि षट्प्रकाराण्यग्निं करोति क्रमसेवनेन ॥ ६ ॥ कुर्याद्दीपनमुद्धतं च पवनं दुष्टामयो यक्ष्मणां । तुन्दस्थौल्य निबर्हणं सुगहनं शूलार्तिनिर्मूलनम् । गुल्मलीहविनाशनो बहुरुजां विश्वासनः सन्ततं सेव्यो ग्रंथमहोदरापहरणः क्रव्यादनामा रसः ॥ ७ ॥ सप्तमः ].. पारा १६ टंक, गंधक ३२ टंक, तांचा ८ टंक, सार ८ टंक इन सबको पीसकर देवे और एरंडके पत्तों में पसारे । अग्निमें फिर पीसकर कजली करें. फिर कपड़छान कर लोहे के पात्रमें डालकर पकी जंबीरीके १०० फलोंका रस डाले नीचे मन्दाग्नि देय जब रस शोष जाय तब पंचकोलके पानीको भावना देवे. तथा अमलवेतके रसकी भावना देवे . इसके बराबर फूला सुहागा, कच्चा नोन आधा डाले. मिरच सुहागेकी बराबर डालकर चनेके खारमें सात बार मले यह क्रव्यादनाम प्रसिद्ध रस है, रसोंके बीचमें बडा भयानक रस है, दो मासे छाछ और सेंधानोंन के साथ नित्य पीवे । भोजन पीछे करे, भारी अन्न. मांस खोआ आदि, पेटेके पदार्थ, फलादि खाया होय तो इसकी यथोचित मात्रा सेवनसे दो प्रहर में जीर्ण होवे, गरिष्ठ भोजन, मांसखाना, छाछ, मीठा फल इनके खानेसे जो अजीर्ण हुआ हो तो इस रसकी एक मात्रा रत्तीभर सेवन करने से दो प्रहर में सको भस्म कर देवे । छः प्रकारके अजीर्णका नाश करे और अनेको प्रचल करे, क्रमसे सेवन करें तो वात और दुष्ट रोगोंको नाश करे, पेटसूजनको दूर करै, शूलका नाश करे, गुल्म, गांठ, प्लीहा इनका और बहुतसे रोगोंका नाश करे । इसका निरन्तर सेवन करनेसे सब उदरविकार दूर होवें यह क्रव्यादनामा रस अतिश्रेष्ठ है ॥ १-७ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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