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________________ (२२२) योगचिन्तामणिः। [मिश्राधिकार:सुचूर्णितैस्त्र्यूषणजन्तुहबीछिन्नोद्भवादाय॑भयात्रिजातैः। त्रिवृत्समैरक्षमितं विचूर्ण निधाय गुप्तं यवधान्यपूते ॥३॥ मासस्थितं प्राश्य शुभेऽह्नि शुद्धः प्रयात्यरोगं रुजितो मनुष्यः । शोफोदरप्लीहरुजोविकारनाभित्रणाझेग्रहणीप्रदोषैः ॥४॥ सवातरक्तैः सकलैश्च कुष्ठैविमुच्यते पाण्डुगदैश्च घोरैः। प्रभंजनो रोगमहातरूणां विवर्द्धनो रोगबलायुषां च ॥५॥ मासाध्यमस्तीति विकारजातं ख्यातस्तु नान्ना भुवि सिंहनादः॥ ६॥ त्रिफला, खस, वायविडंग, सोंठ, मोथा, दंती, चीता, राना, गिलोय, कटसेना, देवदारु, हलदी, पीपलामूल, इलायची, गजपीपल, सोलह सेर पानी सब औषधियोंके बराबर गूगल इनको मिलाके औटावे. जब आधा पानी रहजाय तब छान लेवे. फिर मंदाग्निसे औटाकर जब गाढा होजाय तब उतारलेवे और इन औषधियोंको डाले-सोंठ, मिर्च, पीपल, वायविडंग, गिलोय, दारुहलदी, हरड, तज, तेजपात, इलायची, निसोथ इनकी समान मात्रा १४ टंक चूर्ण करडाले, फिर चिकने बासनमें भरकर रख देवे, यव तथा धानमें एक महीना राखै, फिर अच्छा दिन देखकर सेवन करे तो सूजन, उदररोग, प्लीहा, दरद, नाभीके व्रण, बवासीर, संग्रहणी, वातरक्त, संपूर्ण कोट, पांडरोग ये रोग नाश होवें । यह गूगल रोगरूपी वृक्षोंका छेदन करनेवाला है ॥ १-६ ॥ प्रमेहे मूत्रकृच्छ्रे च चन्द्रप्रभागुग्गुलुः । बिल्वं व्योषफलत्रिकं त्रिलवणं द्विक्षारचव्यानि च श्यामापिप्पलिमूलमुस्तककणामाध्वीकधा Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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