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________________ ( २१६ ) योगचिन्तामणिः । ( मिश्राधिकार : दावशृतेन मेहांश्च गोमूत्रेण च पाण्डुताम् ॥ १० ॥ मेदोवृद्धिं च मधुना कुष्ठं निंबभृतेन च । छिन्नाक्वाथेन वातास्रं शोफं शूलं कफामयान् ॥११॥ पाटलाक्काथसहितो विषं मृषकजं जयेत् । त्रिफलाकाथसहितो नेत्रार्ति हन्ति दारुणाम् । पुनर्नवा दिक्काथेन हन्यात्सर्वोदराणिच ॥ १२ ॥ १ - पीपल, पीपला पूल, चव्य, चीता, सोंठ, भूनी हींग, अजमोदा, सरसों, दोनों जीरे, सम्भालू, इन्द्रायण, पाढ, वायविडंग, गजपीपल, कुटकी, अतीस, भारंगी, वच, मरोडफली इन २० दवाइयों की जदी २ मात्रा एक एक टंक और इन सबसे दूना त्रिफला इन सबका चूर्ण कर सबके चराचर शुद्ध गूगल डाले और घीमें सानकर सबकी गोली बनाकर चिकने बर्तन में रख देवे, २ टंकके प्रमाण गोली सेवन करे, यह योगराजगूगल संपूर्ण वातरोगोंको तथा कोट, अर्श, संग्रहणी, प्रमेह, वातरक्त, नाभिशूल, भगंदर, उदावर्त, क्षय, गुल्म, मृगी, उरग्रह, मंदाग्नि, श्वास, खांसी, अरुचि, वीर्यगत दोष और स्त्रियोंका मदरको दूर करे, पुरुषोंके सन्तान उत्पत्ति करे, सर्व त्रिदोषोंका नाश करे, और रसायन है मैथुन, आहार, पानका कुछ परहेज नहीं है, वन्ध्या पुत्रवती होय और रास्नाके काढेके साथ लेवे तो बहुत प्रकारके वातरोग नाश होवें, कंकोलके काढेके साथ लेवे तो पित्त दूर होवे, अमलतास के काढेके साथ लेय तौ कफ नाश होवे, दारुहळदीके काढेके साथ लेने से प्रमेह दूर होय, गोमूत्र से लेय तो पांडुरोग जाय, शहदके साथ लेय तो मेदरोग दूर होय, नींवकी छाल के काढेके साथ लेय तौ १८ प्रकारका कोढ नाश होय, गिलोय के काढेके साथ लेय तौ आमवात, सूजन, शूल, कफ दूर होवे, पाढरीके क्वाथ के साथ लेने से उदरविष जाय, त्रिफलेके काढेके साथ लेनेसे नेत्रदरद जावे और सोंठ के साथ लेने से संपूर्ण उदररोग नाश होवें ॥ १-१२ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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