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________________ (२०६) योगचिन्तामणिः। [तैलाधिकार:सर्वांश्च दीप्तानपि पक्षघातान्वाताश्रिताध्मानहनुग्रहादीन ॥ ४ ॥ संशुष्कभनप्रबलाङ्गयष्टिं योऽसाध्यतामुल्बणमारुतेन । नीतः पुमस्तिस्य भवेदवश्यं प्रसारणातैलमिदं हिताय ॥५॥ प्रसारणीका काढा कर दूध, दही, महा, कांजी इनको मिलाकर पकावे जब तेल शेष रहजाय तब उतारकर सोंठ, मोथा, नेत्रवाला, कूल, अरणी, तज, मञ्जीठ, अगर, कमल, सांठी, अरल, मुलहठी, मनसिल, छड, सौंफ, देवदारु, शिलाजीत, रास्ना, अगर, गौरीसर, सैंधानोंन, बेल, गिलोय, दारुहलदी, हरड, कांज, अष्टवर्ग, हलदी, बहेडा, आंवला, एरंड, गोखरू, जीवक इनसे सिद्ध किया तेल संपूर्ण वायुरोगोंको दूर करता है. सब इन्द्रियोंको बल करे और पक्षाघात, पेटका अफरा, हनुग्रह, गृध्रसी, सब भुनारोग, बाहुशोष, हृदय, मस्तक, शरीरफटेको उल्वण सन्निपात, आदि संपूर्ण वायुरोगोंको दूर करता है ॥ १-५॥ साधारणगुणभूषाधईचन्दनादितै लम् । चन्दनं पद्मकं कुष्ठमुशीरं देवदारु च। नागकेशरपलात्वङ्मांसीतगरं जलम् ॥ १॥ जातीफलं घोण्टफलं कुंकुमं जातिपत्रिका । नखं कुन्दरुकस्तूरी चण्डासैलेहदं मनः ॥२॥ पतङ्गं पुष्करं मुस्ता रक्तचन्दनसारिवा। शटीकर्पूरमनिष्ठालाक्षायष्टिप्रियंगुभिः ॥३॥ शतपुष्पा वरी मूर्वा ह्यश्वगन्धा महौषधम् । पद्मकेशरश्रीबिल्वमरलागहरेणुभिः ॥ ४ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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