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षष्ठः] भाषाटीकासहिताः। (२०३)
पथ्यं पाने तथाऽभ्यंगे नस्ये योज्ये च दापयेत् ॥६॥ पीडयमाने तथा वाते पक्षाघाताभिमंथके ।
आदिते कर्णशूले च उरुस्तम्भे कटिग्रहे ॥७॥ पवने च शिरःकम्पे सूतिकायां प्रदापयेत् ।। मन्यास्तम्भे धनुःकम्पे ह्यस्थिभंगे च दारुणे ॥८॥ तथा सर्वगते बायौ शुष्यमाणेषु धातुषु । अनातक्षीणरेतस्तु वन्ध्यायां गर्भिणीषु च ॥९॥ वृक्षं पुनर्नवाकारं बलमारोग्यदं महत् । शतावरीतैलमिदं सर्ववातविकारनुत् ॥ १० ॥
शतावरीका रस १०२४ टंक निकालकर मीठा तेल १०२४ टंक डाले फिर दही, दूध डालकर पकाते । सौंफ, वच, कूठ, शिलाजीत चन्दन, प्रियंगु, पदमाख, मोथा, हाउबेर, खस, कायफल, सेधानोंन, मुलहठी, लोध, अगर, पतंग, लाल कनेर, कस्तूरी, इलायची, बालछड, छारछवीला, कमल, नागकेशर, चीढ, राल, जीवक, ऋषभक, कचूर, संभालू, दारु हलदी, गौरीसर, मंजीठ यह सब औषधि एक एक पल लेकर तेलमें डालकर पकावे. जच पकजाँय तब उतारकर पानमें, मर्दन, नास, तथा भोजन आदिमें लेवे. यह वायुवीडा, पक्षाघात, दरद, कानका दरद, उरुस्तम्भ, कमरका दग्द, वमन. मस्तकरोग, प्रसूतिकारोग, इन रोगोंमें अवश्य देवे । जावडास्तम्भ, धनुर्वात हडफूटन भयानक दरद, धातु सूखना, क्षीणवीर्य आदिक रोगोंको दूर करता है, वन्ध्या सेवन करे तो पुत्रवती होय. शरीरको पुष्ट करे. बल करे, आरोग्य करे, सब प्रकारके वायुके नाशक है ॥१-१० ॥
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