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________________ षष्ठः] भाषाटीकासहितः। (१९९) संधिवाते सन्निपाते त्रिकपृष्ठे कटिरहे । पक्षाघाते तथाऽद्धीगे गात्रकंपेऽतिदारुणे ॥७॥ कुब्जके च धनुर्वाते गृध्रस्यां च प्रतानके । विपग मिदं तैलं योजनीयं सदा बुधैः ॥ ८ ॥ १-तेलियामीठा, पोहकर मूल, सोंठ, वच, भारंगी, सतावर, मंजीठ, हलदी, लहसुन, वायविडंग, देवदारु, असगंध, अजमोद, मिरच, पीपलामूल, खरैटी, गंधप्रसारणी, सहजना, गिलोय, हाऊबेर, हरड, दशमूल, संभाल, मेथी, पाढ, कौंचके बीज, इंद्रायणकी जड, सौंफ इन सबको एक एक पल लेकर चौगुने जलमें औटावे, जब चतुर्थाश बाकी रहे तब उतारलेवे, इसमें एक प्रस्य मीठा तेल, एक प्रस्थ अंडीका तेल और एक प्रस्थ सरसोंका तेल डाले, पीछे इनमें धतूरा, अंड, भांगरा, आकका रस एक एक प्रस्थ डाले. फिर गोबरका रस डालकर पकावे. जब तेल सिद्ध होजाय तब एक पल विष डालकर देश में लगावे. यह तेल संपूर्ण वातरोगोंका नाश करे, इसकी मालिशसे संधिगत वायु, सनिपात, त्रिक, पीठ, कमर, इनका दुखना, पक्षाघात, अर्दोग कंपवायु, कुबडापन, धनुषवायु, गृध्रसीवायु, प्रतानवायु आदिक रोग दूर होवें यह विषगर्भ तेल है ॥ १-८॥ कनकश्चापि निर्गुडी तुंबिनी सपुनर्नवा । वानरीयाऽश्वगंधा च प्रान्नाटः सचित्रकः ॥९॥ सौभांजनं काकमाची कलिहारी तु निंबकैः। महानिबेश्वरी चैव दशमूली शतावरी ॥ १० ॥ कारवेल्ली सारिवे द्वे श्रीपी च विदारिका । वज्रार्कमेषशृङ्गी च करबीरद्वयंतथा ।। ११ ॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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