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________________ पञ्चमः ] भाषाटीकासहितः । (१८७ ). करेलाकी जड, पित्तपापडा, जवासा, वाराही कन्द, केवडेकी जड, ब्राह्मी, मँजीठ, ऋषभ ( लहसनके मुवाफिक हिमालय के पहाडमें होता: है ) नेत्रवाला यह सब औषधि चार चार मासे लेवे और २५६ टंक वृतमें तथा पानी २५६ पल में औटावे फिर ६४ पल रक्खे, आमलेका, रस ५१२ टंक डाल देवे, जब झाग और शब्द बन्द होजावे तब निकाल लेवे । १८ प्रकारके कोढ, रक्तपित्त, वायुरोग, सन्निपात, दुष्ट फोडे, दुष्ट रोग, दाद, भ्रम, खांसी, ज्वर, गंडमाला, गांठ, अर्बुद, त्वचारोग और वातरक्तपर यह घृत महातीक्ष्ण है, यह घृत सम्पूर्ण प्रकारकी सूजन को दूर करता है ॥ १ ॥ ७ ॥ मस्तकरोगे षडबिंदुघृतम् । । शुण्ठीविडङ्गयष्ट्याह्वा भृङ्गतोयैः शृतं घृतम् । नस्यं षड् बिन्दुदानेन सर्वमूर्द्धगदापहम् ॥ १ ॥ सोंठ, वायविडंग, मुलहठी इनका भांगरके काढेमें घृत बनाय नास देनेसे संपूर्ण मस्तकरोग जाते हैं ॥ १ ॥ वायुविकारे दशमूलादिवृतम् । दशमूलस्य निर्यूहेर्जीवनीयैः पलोन्मितैः । क्षीरेण च घृतं पक्वं तर्पणं पवनार्तिजित् ॥ क्वाथेन त्रिगुणं सर्पिः प्रस्थसाध्यपयः समम् ॥ १ ॥ दशमूल १ पल, जीवनीयगण १ पल, इनको दूध और घीमें औटावे, जब काढा हो तब काढेसे तिगुना घी और दूध २५६ टंक. डाले | यह संपूर्ण वायुरोगोंका नाश करता है ॥ १ ॥ अश्वगंधाघृतम् । अश्वगंधाकषायेण कल्के क्षीरं चतुर्गुणम् । घृतपक्वं तु वातघ्नं वृष्यं मांसविवर्द्धनम् ॥ १ ॥ '' Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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