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________________ पंचमः ] भाषाटीकासहितः । ( १७९) याच वंध्या भवेन्नारी या च कन्याः प्रसूयते । या चैवास्थिरगर्भा स्याद्या वा जनयते मृतम् ॥ ९ ॥ अल्पायुषं वा जनयेद्या वा शूलान्विता पुनः । ईदृशी जनयेत्पुत्रं तस्या दोषान् व्ययोहति ॥ १० ॥ एतत्कल्याणकं नाम घृतं शम्भुप्रकीर्तितम् । जीवद्वत्कवर्णा या घृतं तस्यास्तु गृह्यते ॥ ११ ॥ सोंठ, मिरच, पीपल, वायविडंग, इलायची, दोनों हलदी, दोनों सारिवा, निसोथ, दंती ( वृक्षविशेष ), जवासा, हरड बहेडा, आंवला, पदमाख, कौंच के बीज, मञ्जीठ, कूठ, ब्राह्मी, तालीसपत्र, बेलगिरी, अष्टवर्ग (जीवक १, ऋषभक २, मेदा ३, महामेदा ४, काकोली ५, क्षीरकाकोकी ६, ऋद्धि ७, वृद्धि ८, जीवनीयगण (अष्टवर्ग, जीवंती, नागपण, मुद्रपर्णी, मधुयष्टी ) प्रसिद्ध है. दोनों चन्दन, मुनक्का, महुआ के फूल, नागबला, शालपर्णी, पृष्ठपर्णी, देवदारु, कचूर, पाढ, दोनों रेणुका, गगनधूल, दोनों जीरे, असगन्ध, अजमोद, कुटकी, अनारका दाना, तुम्बीकी जड, इन्द्रायण, शंखाहुली, दोनों कटेरी, तज, तेजपात, इलायची, नागरमोथा, नागकेशर, वंशलोचन, खस, सिरस, नेत्रवाला, प्रियंगु, मालतीके फूल, जायफल, जावित्री, पोहकर - मूल, विदारीकन्द, केले का कंद, मूसली, इस्तिपर्णी, अतीस, ककडीके बीज, छड, एलुआ इन औषधियोंको चार चार टंक लेकर २५ टंक घृतमें डाले और घीसे चौगुना दूध डाले, दूधसे दूना पानी डालकर आरने उपलोंकी आगसे पकावे, जब पकजाय तब ३ टंक पुरुष और ४ टंक स्त्री नित्य पीवे तो वंध्या पुत्रवती होय और जिसके कन्याही होवे और जो अस्थिर गर्भवाली होय जिसके मराहुआ बालक होय Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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