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________________ चतुर्थः ] भाषाटीकासहितः । ( १६९ ) हलदी, मोथा, चिरायता, त्रिफला, नीम्बकी छाल, अडूसा, दोनों कटेरी, भारंगी, कुटकी, सोंठ, पटोलपत्र, पित्तपापडा, काकडासिंगी, देवदारु, रोहितृण, धन्वयास, नागबला, हरड, कायफल, कुम्भकारी ( भाषा में पुरइन), कुडेकी छाल, पीपल, प्रियंगुके फूल यह सब बरावर लेय और रास्ना दो भाग ले काढा कर सोंठ, मिरच, पीपलसंयुक्त काथ पीने से त्रिदोषज्वर और महाघोर १३ सन्निपात जैसे सूर्य के प्रकासे अन्धकार दूर होता है तैसे दूर होवें. और वमन, पसीना, प्रलाप, शीत, मोह, तन्द्रा प्यास, श्वास, दाह, मदाग्नि, हृदय और पसलीका दरद, विष्टंभ, कंठक्कूजन, जिह्वा फट जाना, कानका शूल इनका नाश करे, इससे परे कोई औषधि सन्निपातकी नहीं है. यह धन्वन्तरीनें कही है ॥ १-७ ॥ कमलवाते फलत्रिका दिक्वाथः । फलत्रिकामृतातितानिंबकैरातवासकाः । हरिद्रा पद्मकं मुस्ताsपामार्गश्चन्दनं कणा ॥ १ ॥ पटोलं पर्पटं चैषां क्वाथः कमलवातहा । त्रिफलाया रसः क्षौद्रयुक्तो दावी॑रसोऽथवा ॥ २ ॥ निंबस्य वा गुडूच्या वा पीतो जयति कामलाम् । कटुका सैन्धवं चैव ह्यपामार्गस्य भस्म च । श्वेतजीरकसं युक्तः कामलायाश्च नाशनः ॥ ३ ॥ त्रिफला, गिलोय, कुटकी, नींबकी छाल, चिरायता, अडूसा, दोनों हल्दी, पदमाख, मोथा, ओंगा, चन्दन, पीपल, पटोलपत्र, पित्तपापड़ा इनका काढ़ा कमलवातको दूर करता है. त्रिफला, हलदी fia और गिलोयका रस पीने से कमलवात जाता है. कुटकी, सैंधानोन, ओंगाकी भस्म, सफेद जीरेके साथ पीने से कमलवात दूर होय ॥ १-३ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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