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________________ भाषाटीका सहितः । पटोलादिक्पाथः । पटोलत्रिफला निम्बद्राक्षाशम्पाकवासकैः । क्वाथं सितामधुयुतं पिवेदैकाहिके ज्वरे ॥ १ ॥ चतुर्थ: ] ( १६५ ) पटोलपत्र, नींव की छाल, मुनक्का, अमलतास, अडूसा, इनका मिश्री और शहदके साथ काढ़ा पीवे तौ ऐकाहिक ज्वर नाश होय ॥ १ ॥ तृतीयज्वरनाशाय तृष्णादाहनिवारणः । पीतो मरिचचूर्णेन तुलसीपत्रजो रसः ॥ द्रोणपुष्पीरसो वापि निहन्ति विषमज्वरान् ॥ १ ॥ मिरच चूर्णको तुलसीपत्ररस संयुक्त पीनेसे तृतीय ज्वर, प्यास तथा दाह दूर होवे और गोभी के फूलके रसके साथ पीनेसे विषमज्वरका नाश करे ॥ १ ॥ ज्वरातिसारे नागरादिक्वाथः । नागरातिविषामुस्ता भूनिम्बामृतवत्सकैः । सर्वज्वरहरः क्वाथः सवतीसारनाशनः ॥ १ ॥ सोंठ, अतीस, मोथा, चिरायता, गिलोय, कूडेकी छाल इनका सम्पूर्ण ज्वरों तथा अतीसारको नाश करता है ॥ १ ॥ अतीसारे वत्सकादिक्कायः । सवत्सकः सातिविषः सबिल्वः सोदीच्यमुस्तश्च कृतः कषायः । सामे सशूले च सशोणिते च चिरप्रवृत्ते च हितोऽतिसारै ॥ १ ॥ कुडेकी छाल, अतीस, बेलगिरी, नेत्रवाला, मोथा इनका काढा कर पीधे तौ । आमशूल, रक्तातिसार, बहुत दिनका अतीसार ये नाश होवें ॥ १ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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