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________________ योगचिन्तामणिः । अतीसारे कुटजाष्टकक्वाथः । कुटजातिविषापाठाधातकी लोध्र मुस्तकैः । दाडिमयुतैः कृतः क्वाथः समाक्षिकः ॥ १ ॥ पेयो मोचरसेनैव कुटजाष्टकसंज्ञकः । अतिसाराञ्जयेद्दाहं रक्तशूलामदुस्तरान् ॥ २ ॥ ( १६६ ) [ काथाधिकारः- कूडेकी छाल, अतीस, पाढ, धायके, फूल, लोध, मोथा, हाऊबेर अनारका बक्कल इनका काढा शहद डालकर मोचरस संयुक्त लेवे तौ अतीसार, दाह, रुधिरशूल, भयानक आमशूल ये सब दूर होवें ॥ १ ॥ ५ ॥ मोचरसादिक्वाथः । मोचरसश्च मञ्जिष्ठा धातकी पद्मकेसरम् । पिष्टैरेतैर्यवागुः स्याद्रक्तातीसारनाशिनी ॥ १ ॥ धातकी विश्वपाषाणसालूर मजमोदकम् । मुस्ता मोचरसं तं सर्वातीसारनाशनम् ॥ २ ॥ मोचरस, मंजीठ, धायके फूल, कमल इनका काढ़ा कर लेय तौ रुधिरातिसारको दूर करे । धायके फूल, सोंठ, पाषाणभेद, बेलगिरी, अजमोद, मोथा, मोचरस इनको पेठेके साथ लेनेसे सब प्रकारका अतीसार नाश होवे || १ || २ | दादिकाथः । दाबुदातिक्तफलत्रिकं च क्षुद्रापटोलं रजनी सनिंबम् | क्वाथं विदध्याज्ज्वरसन्निपाते निश्वेतने पुंसि विबोधनार्थम् ॥ १ ॥ दारूहल्दी, मोथा, कुटकी, त्रिफला, कटेरी, पटोलपत्र, हल्दी, frest छाल इनका काढा कर पीछे तौ सन्निपातजन्य ज्वरको नाश करे और अचेतको सचेत करे ॥ १ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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