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चतुर्थः भाषाटीकासहितः। (१६३) गिरी अतीस, पाढ, रक्तचन्दन, कुडेकी छाल, चिरायता, मोथा, इन्द्रजी इनका अष्टावशेष काढा ठंढा कर शहदके संग लेवे तो रक्त, पित्तज्वर, अतीसार ये सब दूर होवें ॥१-२॥
. चन्दनादिकाथः । चन्दनं च सुगन्धं च बालकं पित्तपर्पटम् । मुस्ता शुंठी किरातं च उशीरं पित्तनाशनम्॥ १॥
मलयागिरि चन्दन, सुगंधवाला, नेत्रवाला, पित्तपापडा, मोथा, सोंठ, चिरायता, खस इनका काढा पित्तज्वरका नाश करता है ॥ १ ॥
बृद्धचन्दनादिवाथः। मलयजपिचुविश्वाः श्रीफलं पद्मकं च जलरुहकटुमुस्तासारिवाहारहूरा। अतिविषयवयष्टीकल्कितस्तुल्यभागैर्हरति गुरुविवाधां पित्तसन्तापमू
ज़म् ॥ १॥ मलयागिरि चन्दन, नींबकी छाल, सोंठ, बेलगिरी, पद्माख, कमल, कुटकी, मोथा, सारिवा ( लताविशेष), मुनक्का, अतीस, इन्द्रजव, मुलहठी इनकी सम मात्रा लेकर काढा बनाकर लेवे तो पित्तकी मूर्छा दूर होवे ॥ १ ॥
त्रायमाणादिक्वाथः। त्रायंतीपर्पटोशीरतिक्ताभूनिम्बदुस्पृशा। कषायो मधुसंयुक्तः पित्तज्वरविनाशनः॥१॥ त्रायगण, पित्तपापडा, खस, चिरायता, कुटकी, जवासा इनका काढा शहदके साथ पीनेसे पित्तज्वरका नाश होय ॥१॥
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