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________________ ( १६२ ) योगचिन्तामणिः । [ क्वाथाधिकारः माथा, पित्तपापडा, साठ, गिलोय, जवासा यह क्वाथ वादी, अरुचि, वमन, दाद, शोष, ज्वर, इन सब रोगोंका नाश करे ॥ १ ॥ वृद्धमुस्तादिकायः । मुस्ता गुडूची सह नागरेण वासाजलं पर्पटकं च पथ्या । क्षुद्रा च दुःस्पर्शयुतः कषायः पीतो हितो वातकफज्वरस्य ॥ १ ॥ माथा, गिलोय, सोंठ, अडूसा, नेत्रवाला, पित्तपापडा, हरड, कटेरी, जवासा यह काढा वातज्वर और कफज्वरका नाश करता है ॥ १ ॥ गुडच्यादिकाथः । गुडूचीनिम्बधान्याकं पद्मकं रक्तचन्दनम् । एष सर्वज्वरं हन्ति गुडूच्यादिस्तु दीपनः ॥ १ ॥ १ - गिलोय, नींवकी छाल, धनियां, पदमाख, रक्तचन्दन इनका काढ़ा सब ज्वरका नाश करता है ॥ १ ॥ गुडूचीधान्यमुस्ताभिश्चन्दनोशीरनागरैः । कृतं क्वाथं पिबेत्क्षौद्रसितायुक्तं ज्वरातुरः || १ | २ - गिलोय, धनियां मोथा, खस और सोंठ, इनके काढेको मिश्री और शहद के साथ पीवे तो ज्वरकी शांति होवे ॥ १ ॥ वृद्धगुडूच्यादिक्कायः । गुडूचीधान्यकोशीरशुंठीवालकपर्पटैः । बिल्वप्रतिविषापाठारक्तचन्दनवत्सकैः ॥ १ ॥ किरात मुस्तेन्द्रयवैः क्वथितं शिशिरे जले | सक्षौद्रं रक्तपित्तघ्नं ज्वग़तीसारनाशनम् ॥ २ ॥ गिलोय, धनियां, खस, सोंठ, हाऊवेर, पित्तपापडा, बेल Aho ! Shrutgyanam 1
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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