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चतुर्थः] भाषाटीकासहितः। (१४९) दे । हृदपपीडाम हृदयपर दाग दे, जहां जहां पीडा होय तहां तहां दागे ॥ २-७ ॥
सन्निपाते भाङ्गादिक्वाथः। भाभूनिम्बनिम्बैधनपटुकवचाव्योषवासाविशा
ला रास्नानंतापटोलीसुरतरुरजनीपाटालाटिंटुकीभिः। ब्राह्मीदाव/गुडूचीत्रिवृतअतिविषापुष्करत्रायमाणा व्याघ्रीसिंहीकलिङ्गीत्रिफलसटियुतैःकल्पितस्तुल्यभागैः ॥ १॥ काथो द्वात्रिंशनामा त्रिकलितदशकान्सन्निपातानिहंति शूलं श्वासं च हिकां कसनगुदरुजाध्मानविध्वंसकः स्यात् । मन्यास्तम्भा
वृद्धिं गदगलसुरतं सर्वसन्धिग्रहांश्च मातंगौघं निहन्यान्मृगरिपुरधिकं रोगजालं तथैव ॥२॥
भारङ्गी, चिरायता, नीम्बकी छाल, मोथा, कुटकी, सोंठ, मिरच, पीपल, अडूसा, इन्द्रायन, गस्ना, जवासा, पटोलपत्र, देवदारु, हलदी, अरल, जलशिरस, ब्राह्मी, दारुहलदी, गिलोय, निसोय, अतीस, पोहकरमूल, त्रायमाण, कटेरी, इन्द्रजव, त्रिफला, कचूर इन सबको बराबर लेकर काढा को, यह तेरह सन्निपातोंको दूर करे । शूल, श्वास, हिचकी, खांसी, गुदारोग, अफरा, आंतोंकी वृद्धि, गलरोग, अरुचि, सब संधियोंका गठ जाना इन रोगोंके जालका जैसे हाथियोंके समूहका सिंह नाश करे तैसे नाश करता है ॥ १॥२॥
__ रुधिरविकारे मंजिष्ठादिक्वाथः १-२ । मंजिष्ठापिचुमन्दचन्दनघनाछिनागवाक्षीवृषात्रायन्तीत्रिवृताशतद्विरजनीभूनिम्बपागविषा । गायत्री
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