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________________ चतुर्थ: 1 भाषाटीकासहितः । ( १४५ ) · औषधि १६ टंक गेरकर मिट्टीके बरतनमें काढा पकावे जब आठवां हिस्सा रहे तब उतार लेवे उसका जल रोगीको पिलावे, मंदाग्निसे कावे उसको क्वाथ, कषाय, निर्यूह कहते हैं. वाथ सात प्रकारका हैपाचन १, शमन २, क्लेदन ३, दीपन ४, भेदी ५ संतर्पण ६, विमोहन ७. पाचन जो है सो दोषों को पचाता है. (पाचन उसे कहते हैं जो दो सेरका सेरभर रहजाय ), दीपन उसे कहते हैं जो अग्निको दीप्त करे 1 दीपन १० कटोरीकी एक रहे ), शोधन मल शुद्ध करे. ( दो कटोरीकी एक रहे, उसे शोधन कहते हैं ). शमन दोषोंको शांत करे, आठ कटोरी की एक रहे ) संतपर्ण में धातु बढे. (छः कटोरीकी एक रहे ). क्लेदी उत्क्लेद करे. ( चार कटोरीकी एक रहे ) विशोषी शोष करता है ( सोलह कटोरीकी एक रहे ). इससे उष्ण जलकी परीक्षा कर लेवे । क्केदी, विशोषी वमन करावे क्वाथ करके लांबे नहीं न 1 चलायमान करे ॥ १-९॥ सर्ववायुविकारे रास्त्रादिक्वाथः । राना गुडूची एरण्डं देवा चाभया सटी | बलोयगंधा पाठा च शतपुष्पा पुनर्नवा ॥ १ ॥ पंचमूली विषा मुंडी सर्पपश्च दुरालभा । यवानी पुष्करं मूलमश्वगंधा प्रसारिणी ॥ २ ॥ गोक्षुरं चांद्ररूपं च हपुषा वृद्धदारुकम् । शतावरी तथा ब्राह्मी गुग्गुलुः क्षीरकंचुकी || ३ || समभागैरिमैः सर्वैः कषायमुपकल्पयेत् । वातरोगेषु सर्वेषु कंप शोफे प्रतानके ॥ ४ ॥ मन्यास्तंभे तथा शोपे पक्षाघाते सुदारुणे । आर्दिताक्षेपकुब्जे च हनुग्रस्वर || ५ || आढयवाते तथा मुके खंजे Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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