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योगचिन्तामणिः ।
[ गुटिकाधिकार:
तथा डाभ कांसके रसकी भी इक्कीस भावना देकर बराबर खांड मिलाकर अनुमान मुवाफिक खाय तो नष्ट शुक्र के रोगको तथा मूत्र कृच्छ्रको नाश करे और सौ स्त्रियोंसे भोग करें, घोडेके समान पराक्रम होवे | यह कामदेवटी श्रीधन्वन्तरि भगवान् ने बनायी है ॥ १-६ ॥
लघुकामेश्वरगुटिका ।
शतावरी गोक्षुरश्च कपिकच्छु उटिंगणम् । गंगेरी कबिला मुस्ता मुशली खुरसाणकम् ॥ १ ॥ समुद्रशोषो हिपरा चविका शाल्मली सटी | मकुष्ठस्य जटामांसी वाजिगन्धा च रेणुका ॥ २॥ विदारी ग्रंथिकं गुंदं विडंगं जीरकं सणम् । मांसी सिताह्वा धान्याकं विजया तुर्यभागिका ॥ ३ ॥ जातिपत्रं जातिफलं चातुर्जातकटुत्रिकम् । कर्पूरं गगनं लोहं रससिंद्रका सिका ॥ ४ ॥ गुटिका द्विगुणखंडेन वृद्धकोलप्रमाणतः । वीर्यवृद्धिं बलं पुष्टिं कामदीप्तिं करोत्यलम् ॥ ५ ॥
शतावर, गोखरू, कौंच के बीज, उटंगन, गंगेरन, खरेटी, बाला, मोथा, मूसली, खुरासानी अजमायन, समुद्रशोष, समुद्रफेन, चव्य, सेमलका मूसला, मेदा, कचूर, जटामांसी, असगंध, संभालूके बीज जावित्री जायफल, तज, तेजपात, इलायची, सोंठ, मिरच, पीपल, कपूर, अभ्रक, सार, रससिंदूर, मिश्री, विदारीकंद, पीपलामूल, मस्तंगी, वायविडंग, जीरा, सनके बीज, छड, सौंफ, धनियां इनसे चौथाई मांग और दूनी खांड डालकर बड़े बेरके समान गुटिका बना खावे तो वीर्यवृद्धि, बल, पुष्टि, कामदीपन पूर्ण करे ॥ १-५ ॥
Aho! Shrutgyanam