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________________ तृतीयः] भाषाटीकासहितः। (१३३ ) करे और अंजन करे तो नेत्ररोग नाश होवें, तोलके यथायोग्य भक्षण करे तो यह गोली समस्तकार्योको सिद्ध करे ॥ १-५॥ ___अतीसारे अरलूगुटिका । अरेलू बिल्वजम्ब्वानं कपित्थं च रसाञ्जनम् । लाक्षा हरिद्रा हीबेरंस्योनाकं कट्फलं तथा ॥१॥ लोभ्रं मोचरसं शृंगी धातकी च वटांकुरान् । पिष्ट्वा तण्डुलतोयेन गुटिकां चाक्षसंमिताम् ॥२॥ छायाशुष्कां पिबेक्षिप्रं ज्वरातीसारशान्तये । रक्तपित्तप्रशमनी ग्रहणीशूलनाशिनी ॥ ३ ॥ अरलूकी छाल, बेलगिरी, जामुनकी छाल, आमकी छाल, कैथ, रसोत, लाख, हलदी, हाउबेर, नेत्रवाला, कायफल, लोध, मोचरस, सोंठ, धायके फूल, वटके अंकूर इन सबको चावलके पानीमें खरल कर बहेडेके समान गोली बनावे और छायामें सुखाकर सांठी चांवलोंके पानीले संग प्रभात समय खावे तो ज्वर, अतीसार, रक्तपित्त, संग्रहणी और शूलको दूर करै ॥ १-३ ॥ ग्रहणीकपाटगुटिका। चातुर्जातकचव्यजीरकयुगं व्योषारलू ग्रंथिक श्रीवृक्षातिविषाऽजमोदयुगलंचूतास्थिपाठांबुदम् । यष्टी चेन्द्रयवाम्लकास्थिकवचा लोभ्रं समझारजः कुर्यान्मोचरसान्वितं समजयेद्वासावनोतद्गुणान् ॥ १॥ आबद्धा ग्रहणीकपाटवटिका अक्षप्रमाणा भजेत्साध्मानग्रहणीविकाररुधिरातीसारविच्छित्तये २। Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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