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"तृतीयः ]
भाषाटीका सहितः ।
( १२७ )
चनेके बराबर गोलियां बनावे फिर उस गोलीसे अञ्जन करे तो विषूचिकारोगं तथा मर्च्छा जाय ॥ १ ॥
विषूचिका अञ्जनगुटिका ।
व्योपा करंजस्य फलं हरिद्रे मूलं समावाप्य च मातुलुङ्गा । छाया विशुष्का गुटिका विधेया हन्याद्विषूचीं नयनांजयेन ॥ १ ॥
सोंठ, मिरच, पीपल, करंजबीज, हलदी पीसकर बिजौरे के रस में गोली बनावे और छाया में सुखाकर अञ्जन करे तो विषूचिकारोग नाश होवे ॥ १ ॥
मातुलुङ्गजटा व्योपनिशाबीनं करञ्जकम् । काञ्जिकेनाञ्जनं हन्याद्विषूचीमतिदारुणाम् ॥ २ ॥
बिजौरेकी जड, सोंठ, मिरच, पीपल, हलदी, कंजाके बीज इनकी कांजी के पानी में गोली बनावे और अञ्जन करे तो दारुण विषूचिका दूर होवे ॥ २ ॥
प्रचेता गुटिका |
त्र्यूषणं त्रिफला हिङ सैन्धवं कटुका वचा । नक्तमालस्य बीजानि तथा गौराश्च सर्पपाः ॥ १ ॥ मेषमूत्रेण पिष्टानि च्छायाशुष्कं विधापयेत् । भूतोन्मादेप्यचैतन्येऽञ्जनमैका हिकादिषु ॥ २ ॥
सोंठ, मिरच, पीपल, त्रिफला, हींग, सैंधानोन, कुटकी, बच, कंजाकी मिंगी, सफेद सरसों इनकी मैढेके मूत्रमें गाली बनावे और छाया में सुखावे और नेत्र में, आंजे तो यह अञ्जन भूतादिकोंको तथा ऐकाहिक ज्वरादि अचेतनता और उन्मादको दूर करे ॥ १-२ ॥
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