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(१२६) योगचिन्तामाणिः। {गुटिकाधिकारःकोठेको शुद्ध करे और टेढे जलसे विरेचन होवे, गरम जलसे विरेचन बंद होते हैं. विरेचन नाम दस्तोंका है ॥ २॥ ३॥ टंकणमयूरतुत्थं स्नुहीक्षीर अजैपालमेरण्डम् । नाभिप्रलेपदत्तं नरपतियोग्यं विरेचनं कुरुते ॥४॥ मध्यमस्त्रिवृतस्तिक्ता राजवृक्षो विरेचनम् । क्रूगम्नुक्पयसाहेमक्षीरदंतीफलादिभिः ॥ ५॥ एरंडतैलं दुग्धं गोस्तथा तुंबी हरीतकी । वज्री क्षीरगुटी चाथ पिप्पली तेन भाविता ॥६॥ महिषावलिखा चैव कंपिल्लं तक्रमेव च। उष्ट्रीदुग्धं तथा पेयं घोडाचोली गुटी तथा ॥ ७॥ सुहागा, नीलाथोथा, सेहुंडका दूध, शुद्ध जमालगोटा, अरंडीके वीज इनको पीसकर नाभीपर लेप करे, यह राज योग्य विरेचन है. एलुआ, निसोथ, कुटकी, अमलतास यह मध्यम जुलाब है । आकका दूध, थूहरका दूध, शुद्ध जमालगोटा यह क्रूर जुलाब है। अरंडीके तेल वा गायके दूधमें गोली बनावे अथवा पीपलोंको थूहर के दूधमें भावना देवे, साँठी चांवलोंमें कबीला महा सङ्ग पीवे अथवा ऊंटनीके दूध घोडाचोलीरस सेवन करे ॥४-७॥
विषूचिकाहरगुटिका । पलत्रिकं व्योषकरअबीजं रसं तथा दाडिममातुलुगयोः । निशायुगं पिष्य कृता च वर्तिस्तदानं
हन्ति विषूचिकां च ॥१॥ .: त्रिफला, सोंठ, मिरच, पीपल, करंजुएके बीज, हलदी, दारुहलदी, पीसकर विजौरेके रसमें अथवा अनारके रसमें
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