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________________ तृतीयः] . भाषाटीकासहितः। (१२१) चिरेण रोगान् ॥ १२॥ विजया नाम गुटिका विख्याता रुद्रभाषिता । भक्षयेद्यो नरो वर्ष तस्य सिद्धिर्न संशयः ॥ १३ ॥ हरड ३ पल, चित्रक ३ पल, इलायची ८ टंक, तज ८ टंक, सेजपात ८ टंक, मोथा ८ टंक, सोंठ, मिरच, पीपलामूल, तेलिया ४ टंक, नागकेशर ४ टंक, संभालूके बीज ८ टंक, गन्धक १ पल, पारा १ पल, पारे गन्धककी कजली कर लेवे और सबको महीन पीसकर और सब औषधियोंके बराबर गुड डालकर ३६० गोलियां बनावे, प्रातःकाल एक गोला नित्य खावे. भोजन इच्छा रुचिसे करे तो एक महीनेमें बुढापेको दूर करे, दो महीनेमें अग्निको प्रज्वलित करे, तीन महीनेमें वीर्यको बढावे, बल वर्णको बढावे, कोढ १८, प्रमेह २०, महाक्षय, प्लीहा, श्वास, खांसी, आतें बढनेको, अरुचि, वातजरोग ८० मूत्रकृच्छ्र, गलग्रह, सम्पूर्ण मूर्छा तथा स्थावर जंगम विष, योनिदोष, मिग्गी, उन्माद, विषमज्वर आदिकोंका नाश करता है और हाथिकासा बल, घोडेकासा वेग, मारकीसी अग्नि, शूकरकासा श्रवण आर स्त्रीसंगमें घोडेके समान बहुत प्रबलता होय, नेत्रोंमें ज्योति गीधके तुल्य हो इस औषधिके समान दूसरी औषधि जगत्के विषे नहीं है, जिससे मनुष्य अपनी पूरी आयुष्य भोगे. इसमें मैथुन करना वर्जित नहीं है और ग्राम्यधम और भोजन यथेष्ट करना । यह ब्रह्मा और विष्णुने बनाया, राज्याभिषेक इन्द्रने करी यह श्रेष्ठ रसायन है. यह सब रोगोंका शीघ्रही नाश करती है, यह विजयानाम गोली प्रसिद्ध महादेवजीने फही है, जो मनुष्य इसे एक वर्ष सेवन करे उसको निस्संदेह सिद्धि प्राप्त होय ॥ १-१३ ॥ .. .. . Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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