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________________ योगचिन्तामणिः । मरिचादिमुटी । कर्ष संमिता । मरिचं कर्षमात्रं स्यात्पिप्पली अर्द्धकर्ष यवक्षारं कर्षयुग्मं च दाडिमम् ॥ १ ॥ एतच्चूर्णीकृतं युञ्ज्यादष्टकर्षगुडेन हि । शाणप्रमाणां गुटिकां कृत्वा वक्रे च धारयेत् ॥ अस्याः प्रभावात्सर्वेऽपिकासा यांत्येव संक्षयम्२ ॥ मिरच ४ टंक, पीपल ४ टंक, जवाखार २ टंक, अनारदाना ८ टंक इनको पीसकर ३२ टंक गुड मिलावे और टंक टंकके प्रमाण गोलियां बांधे और मुखमें रक्खे. इन गोलियोंक प्रभावसे पांच प्रकारकी खांसीका नाश होता है ( इसको दाडिमादि गुटिका भी कहते हैं ) ॥ १ ॥ २ ॥ ( ११६ ) [ गुटिकाधिकारः खैर सारादिगुटिका | बिभीतक हरीतक्यौ धात्रीकटुफलानि च । शुंठीमरिचपिप्पल्य एला कर्कटभृंगिका ॥ १ ॥ कर्पूरं पिप्पलीमूलं लवङ्गं शुंठिसंयुतम् । एतानि समभागानि सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् ॥ २ ॥ खदिरं च समं देयमादक द्रवभावना | भावयेत्कि कक्काथैर्वटिका कोलमात्रया ॥ ३ ॥ कासं कण्ठे कफं हन्ति स्वरभङ्गं च दारुणम् । गृध्रसी च निहंत्याशु क्षयरोगहरी परा ॥ ४ ॥ बहेडा, हरड, आंवला, कायफल, सोंठ, मिरच, पीपल इलायची, काकडासिंगी, कपूर, पीपलामूल, लौंग, कचूर ये औषधि बराबर ले महीन चूर्ण कर सबके बराबर खैरसार डाल फिर अदरख के रसकी भावना देवे, फिर छोटे बेरकी बराबर गोली Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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