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________________ तृतीयः ] भाषाटीकासहितः । ( ११५ ) लेकर शहद में गोली बनावे और प्रातःकाल खावे तो प्रमेह, शूल, अरुचि, आमवात, पीलिया, पांडुरोग, कोढ, श्वास, खांसी, गोला और अर्श आदिको नाश करे ॥ १-३ ॥ प्रमेह में चन्द्रकलागुटिका । एला सुकर्पूरसुधासधात्री जातीफलं गोक्षुरशाल्मली च । सूतेन्द्रवंगायसभस्म सर्वमेतत्समानं परिमर्दयेच्च ॥ १ ॥ गुडूचिका शाल्मलिका कषायपिष्टं समाना मधुना ततश्च । बद्धा गुटी चन्द्रकलेति संज्ञा मेहेषु सर्वेषु नियोजनीया ॥ २ ॥ इलायची, कपूर, मिश्री, आंवला, जायफल, गोखरू, सेमलका गोंद, पारा, इंद्रयव, बंगसार इसकी समान मात्रा लेकर एक प्रहर मर्दन करे फिर गिलोय और सेमल के गोंदके काढेमें घोटे और शहद में गोली बनावे. यह चन्द्रकला गुटिका संपूर्ण प्रमेहोंको दूर करती है ॥ १ ॥ २ ॥ पीनसादिमें व्योषादिगुटी । व्योषाम्लवेतसं चव्यं तालीसं चित्रकं तथा । जीरकं तिन्तडीकं च प्रत्येकं कर्षभागकम् ॥ १ ॥ त्रिसुगंधं त्रिभागं स्याद्गुडः स्यात् कर्षविंशतिः । व्योपादिवटिका नाम पीनस श्वासकासजित् ॥२॥ रुचिस्वरकरी ख्याता प्रतिश्यायप्रणाशिनी ॥ ३ ॥ सोंठ, मिरच, पीपल, अमलवेत, चव्य, तालीस, चित्रक, जीरा, संतडीक डी इन सबको एक एक कर्ष, त्रिसुगंध तीन भाग और गुड २० कर्ष लेवे, यह व्योपादिवटी है । इसके खानेसे पीनस, खांसी श्वास, अरुचि और स्वरमंग आदि रोग नाश होवें ॥ १-३ ॥ Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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