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योगचिन्तामणिः ।
[ चूर्णाधिकारः
गिलोय. ओंगा, वायविडंग, शंखाहुली, ब्राह्मी, वच, सोंठ, शतावरी ये सब बराबर लेवे और चूर्ण कर घृतके संग अवलेह कर सेवन करे तो तीन दिनमें हजार श्लोककी धारणा होवे, मालकांगनी तेलको सूर्य पर्वके समय जलमें पीवे तो पंडित होवे ॥ ४-६ ॥
त्रिकटुत्रिफला धान्य यवानी शतमूलिका । वचा भाङ्ग तथा ब्राह्मीचूर्ण समधु लेहयेत् ॥ ७ ॥ वाक्प्रदायि च बालानां वीणावाद्यसमस्वरम् । तैलं तीक्ष्णं रूक्षमम्लं वातलं च विवर्जयेत् ॥ ८ ॥ ज्योतिष्मत्यास्तैलमत्राभिमन्त्रय वाग्वादिन्या मंत्र- बीजं त्रिकंतु । जिह्वायां वै लिख्यते यस्य जन्तो लेखन्या जायतेऽसौ कवीशः ॥ ९ ॥
नागपुरीययतिगणश्रीहर्षकीर्तिसंकलिते । वैद्यकसारोद्धारे चूर्णाधिकृतिर्द्वितीयेयम् ॥ २ ॥
सोंठ, मिरच, पीपल, त्रिफला, धनियां, अजमायन, शतावरी, वच, ब्राह्मी, भारंगी इन सबको बराबर लेवे और शहदके साथ सेवन करे तो बालकभी बोलने में चतुर होय, वीणाकासा शब्द बोले । इन चीजोंसे परहेज करे-तैल, चरपरा, रूखा, खट्टा, वातल । ब्राह्मी, गोरखमुंडी, पीपर, नागेश्वर, कूठ, मक्खन और सफेद वच ये औषध मूखको १ तोला देनेसे कवीन्द्र करता है अथवा मालकांगनी के तेलको सरस्वती के मन्त्रसे अभिमन्त्रित कर बालककी जीभपर सरस्वती बीजको लिखे तो कविराज होय ॥ ७-९ ॥
इात श्रीमाथुरदत्तराम चौबेकृतमाथुरीमञ्जूषाभाषाटीकायां चूर्णाधिकारो द्वितीयोऽध्यायः ॥ २ ॥
Aho! Shrutgyanam