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द्वितीयः ] भाषाटीकासहितः। (१०१ ) प्रत्येक कोलमा स्यात्तच्चूर्ण दाडिमाष्टकम् । अतीसारं क्षयं गुल्मं ग्रहणीं च गलग्रहम् । मन्दाग्निं पीनसं कासं चूर्णमेतब्धपोहति ॥३॥
अनारदाना ८ पल, मिश्री ८ पल, पीपल, पीपलामूल, अजमायन, मिरच, धनियां, जारा, सोंठ, ये सब एक एक पल लेवे, वंशलोचन ४ टंक, तज, तेजपात, दालचीनी, इलायची, नागकेशर इन औषधियोंको दो दो टंक लेवे, यह दाडिमाष्टक चूर्ण अतीसार, क्षयी, गोला, संग्रहणी, गलरोग, मन्दाग्नि, पीनस, खांसी आदि रोगोंका नाश करे ॥ १-३ ॥
उदरकृमिरोगमें वचादिचूर्ण । वचाऽजमोटा कमिहत्पलाशबीजं सटी रामटकं त्रिवृच्च । जलेन तप्तेन तु पेष्यपेयं पतन्ति शीघ्रं कृमयः समूलाः ॥ १॥ वच, अजमोद, वायविडंग, ढाकके बीज, सोंठ, कचूर, हींग, निसोथ इनका चूर्ण गरम जलके साथ पीवे तो सब कृमि गिरपडें ॥ १ ॥
कपिल्लकं विडङ्गानि क्षारं सैन्धवमेव च । पिष्ट्वा तक्रण पातव्यं नित्यं कृमिविनाशनम् ॥१॥
कबीला, वायविडंग, जवाखार, सैंधानोन इनको पीसकर मटेके संग पीवे तो कृमि नाश होवें ॥ १ ॥
कोलमज्जा कणा वह्निपक्षभस्म सशर्करम् । मधुना लेहयेच्छीदहिकाकोपस्य शांतये ॥१॥
बेरकी मिंगी, पीपल, चीता, मोरपंखकी राख, मिश्री शहदके साथ लेवे तो छर्दि, हिचकी ये सब दूर होवें ॥ १ ॥
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