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(१०२) योगचिन्तामणिः। चूर्णाधिकारःलाजाकपित्थमधुमागधिकोषणानां क्षुद्राभयात्रिः कटुधान्यकजीरकाणाम् । पथ्यामृतामरिचमाक्षि कपिप्पलीनालेहास्त्रयःसकलवम्यरुचिप्रशान्त्यै ॥२॥ पहिला-धानकी खील, कैथ, मुलहठी, पीपल, मिरच, दूसरा कटेरी, हरड, त्रिकटु, धनियां जीरा इनका अवलेह और तीसरा-हरड़, गिलोय, मिरच, शहद, पीपल इनका अवलेह सब अरुचि और छर्दिका नाश करता है ॥ २ ॥
कोलामलकमज्जानौ मक्षिकाविट् सिता मधु । सकृष्णातण्डुलो लेहः श्रेष्ठश्छर्दिनिवारणः ॥३॥ बेरकी मिंगी, आंवलेकी मिंगी, मक्खीकी बीट, मिश्री, शहद, पीपल इनको सांठी चावलोंके पानीके साथ लेवे तो सब प्रकारकी छर्दि जाय ॥ ३ ॥
दन्तपीडामें जातीपत्रादिचूर्ण। जातीपत्रपुनर्नवागजकणाकोरण्टकुष्ठावचाशुण्ठी दिव्यशतावरी समघृतं चूर्ण मुखे धार्यते। वातनं कफनाशनं कृमिहरं दुर्गधिनिर्णाशनं
क्रस्यापि समस्तदोषहननं दन्तश्च वज्रायते ॥ १ ॥ जावित्री, सांठकी जड, गजपीपल, कोरटंक वृक्षके फूल, कूठ, वच, सोंठ लौंग, शतावर इन सबको बराबर लेवे और सबके समान घी लेकर मुखमें रखनेसे वायुविकार, कफ, कृमि तथा मुंह की दुर्गंध जाय और दाँत वज्रके समान होजावें ॥ १॥
कुष्ठं दावी लोध्रमब्दं समङ्गा पाठा क्ता तेजनी पीतका च । एतच्चूर्ण घर्षणंतद्विजानां रक्तस्रावं
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