SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयः] भाषाटीकासहितः। (९५) त्रिसुगंध इन सबको बरावर २ लेवे, गरम जलसे अंडीका तेल मिलाकर देवे तो यह विजयचूर्ण बवासीर, खांसी, गोला,संग्रहणी, कृमिरोग, पांडरोग, भयानक शुल, श्वास, तापतिल्ली, प्रमेह, ज्वर, अरुचि, उदावर्त्त, अफरा और आमवात इन सब रोगोंका नाश करे ॥ १॥ नारायणचूर्ण। द्वौ क्षारौलवणानि पंच हपुषाधान्याजगन्धा सटी व्योषाजाज्युपकुञ्चिका कृमिजितः कंकुष्ठकुष्ठाग्रयः। उग्रागंधककारवी मिसियुतं योज्यं फलानां त्रयं मूलं पुष्करजं यवान् परिभवेदेतानि तुल्यान्यथ ॥१॥ त्रिवृदिशाले द्विगुणाथ दन्तिनी त्रिसगुणा स्वादथतिक्तका भवत्। चतुगुणा चूणमुदाहृतं जनैरिदं हि नारायणमौषधं बुधैः ॥२॥ उष्णोदकेन यवकोल कुलस्थतोयैस्तकेण मद्यदधिमस्तुमुरासवैर्वा । नारायणं प्रपिबतः सकलौदराणि नश्यन्ति विष्णुमिव दैत्यगणा द्विषन्तः ॥३॥ सज्जीखार, जवाखार, पांचों नोन, हाऊबेर, धनिया, अजमोद, कचूर, सोंठ, मिरच, पीपल, काला जीरा सफेद जीरा, वायविडंग, कंकोल, कूठ, चित्रक, वच, पीपलामूल, सोवाके बीज, त्रिफला, पोहकरमूल, अजमायन इन सब औषधियोंको बगबर लेकर निसोथ, इन्द्रायनकी जड हरएक दूनी लेवे, दंती तिगुनी लेवे, कुटकी चौगुनी लेय सबका चूर्ण कर गरम जलसे अथवा. यवके काढेके साथ तथा कुलथीके काढेके साथ अथवा छांछके साथ वा मदिराके साथ वा दहीसे वा दहीके जलसे वा मुरामांसीके आसवसे इस नारायणचूर्णको पीवे Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy