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________________ (९६) योगचिन्तामणिः। [चूर्णाधिकारःवो सम्पूर्ण उदरके विकार ऐसे नष्ट होवें जैसे विष्णुभगवान् के सुदर्शन'चक्रसे दैत्योंका नाश हुआ ॥ १-३ ॥ त्रिलवणादिचूर्ण। त्रिलवणहपुषाजमोदोग्रगन्धा वचा हिंगु पाठोपकुंचिका सटी जीरका धानिकस्तुंबरी सापि काकावगतुंबरूसर्जिका यावशूकाजटा पुष्करं दाडिमं तिन्तडीकं विडंबानि भाङ्गी वरी वेतसाम्लो मरीचं गजकणाऽभया पंचकोलानि कुभाविशाला यवानी सुराता च तत्सर्वमेकत्र चूर्णीकृतं बीजपूराईकरसेनासकृद्भावितं यः पिबेत्प्रातरुत्थाय चाहारकालेऽथवा मासमात्रंहिताशी नरःप्लुतमशिशिरेण वारिणा जीर्णमन तण कोलांभसा मस्तुना वा पिबेत् सर्पिषा कोष्णदुग्धेन तत्क्षारनष्टोरनिष्टस्ततः श्वेतवादाडिमं वारसेनात्मवानेभिरेवौषधैः सारितं व्याधिद्धृदयगुदकटियकृप्लीहगुल्माश्रितं तस्य शूलप्रणाशस्तथा गुल्मविष्टंभदुर्नामहृद्रोगकृच्छोदराध्मानहल्लासयक्ष्मारुचिश्वासकासान्प्रपचयत्यसकौभवेत्पाचकः प्राश्यमानानि पाषाणचूर्णान्यपि ॥ - तीनों नोन, हाउबेर, अजमोद, असगंध, वच, हींग, पाढ, काला जीरा, कचूर, अजवायन, धनियां, हिंगुपत्री, सोवा, तुंवरू, सज्जी, जवासा, पोहकरमूल, अनारदाना, वैतडीक, वायविडंग, भारंगी, शतावर, अमलवेत, काली Ahoi Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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