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________________ (९४) योगचिन्तामणिः । [चूर्णाधिकार:- . मरिचं चेति कर्षांशं प्रत्येकं कारयेद् बुधः। कर्षास्तु पञ्च पथ्याया दश स्युर्वृद्धदारुकाः॥२॥ नागराच्च दशैव स्युः सर्वानेकत्र चूर्णयेत् । पिबेत्कोष्णजलेनैतच्चूर्ण शोफविनाशनम् ॥३॥ आमवातरुजं हन्ति सन्धिपीडां च गृध्रसीम् । कटिपृष्ठगुदस्थां च जंघयोश्च रुजं जयेत् ॥ ४ ॥ तूनीप्रतूनीवातांश्च कफवातामयाञ्जयेत् । समेन वा गुडेनास्य वटिकाः कारयेद् बुधः॥५॥ अजमोदा, वायविडंग, सैंधानोन, देवदारु, चित्रक, पीपलामूल, सौंफ, पीपल, मिरच, इन सबको एक एक कर्ष लेवे और हरड पांच कर्ष लेवे, विधायरा दश कर्ष लेवे, सोंठ दश कर्ष लेवे, सबको एकत्र कर चूर्ण करे और गरम जल के साथ लेवे तो सूजनका नाश करे, आमवात, संधियोंकी पीडा, गृध्रसी रोग तथा कमर, पीठ, गुदा, जंघा इनकी पीडाका नाश करे. तूनी, प्रतूनी, विश्वाची और कफके रोगोंको दूर करे. अथवा इसमें बराबर गुड मिलाकर गोली बना लेवे ॥ १-५॥ उदरविकारमें विजयचूर्ण । श्रीदीपोग्राग्निहिंगुद्धिविषिमिशिवकीचव्यतिक्तापटूनि ग्रन्थिक्षारेन्द्रजत्रित्रिकमिति विजयः सोष्णकैरण्डतैलम् । हन्त्यर्शःकासगुल्मग्रहणिकृमिरुजापाण्डुरुग्भूतशूलं श्वासप्लीहं प्रमेहं ज्वरमरुचिमुदावर्तधर्मामवातान् ॥१॥ अजमोद, वच, चीता, हींग, अतीस, सोया, पाढ़, चव्य, कुटकी, पांचों नॉन, पीपलामूल, जवाखार, इन्द्रयव, सोंठ, मिरच, पीपल, Aho ! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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