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________________ द्वितीयः] भाषाटीकासहितः। (९१) देवे, यह वज्रक्षार श्रीमहादेवजीने कहा है, इसको सब उदरके रोग, गोला, सूजन, शूल इनमें देना चाहिये, मन्दाग्नि और अजीर्णमें दो टंकके अनुमान खावे ॥ १-६॥ अर्कपत्रं सलवणं पुटदग्धं सुचूर्णिम् । निहन्ति मधुना लीढंप्लीहानं च सुदारुणम् ॥ १॥ आकके पत्तोंमें नोन मिलाकर भस्म करे, उस भस्मको शहदके साथ चाटनेसे महाभयानक प्लीहारोग नष्ट होवे ॥ १ ॥ विडलवणादिचूर्ण। विडरुचकयवानी जीरके द्वे च पथ्या त्रिकटुकहुतभुग्भ्यां वेतसाम्लाजमोदाः । समविहितरजोभिर्धान्यकं तिन्तडीकं जरयति नगकूटं का कथा भोजनस्य॥१॥ बिडनोन, अजमायन, दोनों जीरे, हरड, सोंठ, मिरच, पीपल, चित्रक, अमलवेत, अजमोद, धनियां, तितडीक इन सबको समान लेवे । यह चूर्ण पत्थरको जीर्ण करदेवे, भोजनकी तो क्या बडी बात है ? ॥ १॥ सामुद्रिकचूर्ण। सामुद्रसौवर्चलसैन्धवानां क्षारो यवानामजमोदभागम् । हरीतकी पिप्पलिशृंगवेरं हिंगुर्विडंगानि समं च दद्यात् ॥ १॥ एतानि चूर्णानि घृतप्लुतानि भुञ्जीत पिण्डान्प्रथमं च पञ्च । अजीर्णवातं गुदगुल्मवातं वातप्रमेहं विषमं च वातम् ॥२॥ विषूचिकांकामलपाण्ड्डरोगान्कासं च श्वास हरते प्रवृद्धम् ॥ ३॥ Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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