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यागचिन्तामणिः । [ चूर्णाधिकारः
अमलवेत २ पल ले सबको मिलाकर खूब बारीक पीसे । यह लवणभास्कर चूर्ण भास्करवैद्यका बनाया हुआ है, सुगन्धयुक्त और अमृतके तुल्य है इसको छांछ, कांजी, दारु, दही इनके साथ खासे वात कफके विकार, वायगोला, मन्दाग्नि, संग्रहणी, बवासीर, हृद्रोग, प्लीहके रोग ये सब नष्टं होते हैं ॥ १-५॥
वज्रक्षारचूर्ण |
सामुद्रं सैन्धवं काचं यवक्षारं सुवर्चलम् | टंकणं स्वर्जिकाक्षारं तुल्यं चूर्ण प्रकल्पयेत् ॥ १॥ अर्क - क्षीरैः स्नुही क्षीरैर्भावियेदातपे त्र्यहम् । अर्कपत्रे लिपेत्तं तु रुद्धा चांधपुटे पचेत् ॥ २ ॥ सकलं चूर्णयित्वाऽथ त्र्यूषणं त्रिफलारजः । जीरकं रजनी वह्निर्निम्बकस्य रसं समम ॥ ३ ॥ एकीकृत्य प्रयोगेण सूक्ष्मं चूर्णे तुकारयेत् । वज्रक्षारमिदं चूर्ण स्वयं प्रोक्तं पिनाकिना ॥ ४ ॥ सर्वोदरेषु गुल्मेषु शोफे शूलेषु योजयेत् । अग्निमांद्यमजीर्णेषु भक्ष्यं निष्कद्वयं द्वयम् ॥ ५ ॥ अर्कपत्रं सलवणं पुढे दग्धं सुचूर्णितम् । निहन्ति मधुना
पीतं लीहानं शूलदारुणम् ॥ ६ ॥
समुद्रनोन, सैंधानोन, कचियानोन, जवाखार, संचरनोन, सुहागा, सज्जी इन सबको बराबर ले चूर्णकर आकके रसकी और थूहर के दूधकी तीन तीन भावना देवे, पीछे इस चूर्णको आकके पत्तोंसे लपेटकर अंधमूषापुट में रखकर फूंक देवे । जब सबकी भस्म होजाय तब इसमें इतनी औषध और मिलावे-सोंठ, मिरच, पीपल, त्रिफला, जीरा, हलदी, चित्रक, इनका चूर्णकर औषधियोंके समान नींबू के रसकी भावना
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