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________________ योगचिन्तामणिःतालीसादिचूर्ण १-३ | ताली सोपणचव्यनागलवणैस्तुल्यांशकैर्द्विस्थितं कृष्णाग्रं थिकतन्तडीक हुतभुक्त्वग्जीरकौ तूर्यकौ । विश्वैलाबदराम्लवेतस घनैर्धान्याजमोदान्वितास्तिस्रो दाडिमसारपादसहितः श्रेष्ठः सिता खाण्डवः ॥ १ ॥ कण्ठास्योदरहृद्विकारशमनं कामाग्निसन्दीपनो गुल्माध्मान विषूचिका गुदरुजः श्वासं कृमीञ्छर्दिकाम | कासारुच्यतिसारगूढमरुतां हृद्रोगिणां कीर्तितश्चूर्णोऽयं भिषजामतीव दयितः ख्यातो महाखाण्डवः ॥ २ ( ८० ) [ चूर्णाधिकारः . 3 १ - तालीसपत्र, कालीमिरच, चव्य, नागकेशरर, सैंधानोन ये औषधि प्रत्येक चार चार टंक लेवे, पीपल, पीपलामूल, तंतडीक ( दसरा ), चित्रक, दोनों जीरे, तज, तमालपत्र, इन औषधियोंको आठ आठ टंक लेवे सांठ, इलायची, बेरकी मींगी, अम्लवेत, नागरमोथा, धनियां अजमोद इन औषधियोंको बारह बारह टंक लेवे, इन सबका चतुर्थांश अनारदाना लेवे और सबके समान मिश्री मिलावे, 'अथवा सफेद चीनी मिलाकर नित्य खाय तो कंठ, मुख, उदर, हृदय इनके विकारों को नष्ट करे, कामाग्निको बढावे, गोला, अफरा, हैजा, बवासीर, श्वास, कृमि, छर्दि खांसी, अरुचि, अतिसार, गूढवातव्याधि और हृदयरोगोंको हित है, वैद्योंको अत्यन्त प्यारा यह चूर्ण महाखाण्डव नाम से विख्यात है ॥ १-२ ॥ तुल्यं तालीसचव्योषणलवणगजद्विःकणा ग्रंथ्यजाजी वृक्षाम्लाऽमित्वचं त्रिर्घनबदरघनै लाजमो Aho! Shrutgyanam
SR No.034215
Book TitleYog Chintamani Satik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshkirtisuri
PublisherGangavishnu Shrikrishnadas
Publication Year1954
Total Pages362
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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