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द्वितीयः ]
भाषाटीकासहितः ।
( ८१ )
दालविश्वम् । सार्द्धं श्वेतो सारेऽतिसृतिकृमिवमौ खाण्डवारुच्यजीर्णे गुल्माध्मानानलास्योदर'लवासकासे ॥ १ ॥
२ - तालीसपत्र, चव्य, कालीमिरच, नागकेशर, गजपीपल, पीपलामूल, पीपल, जीरा, तंतडीक, चित्रक की छाल, तज, नागरमोथा, भिंगी, धनियां, इलायची, अजमोद, अमलवेत, सोंठ, अनारदाना इन सब औषधियोंको बराबर लेकर इनसे आधी मिश्री मिलावे, मिश्रीको छोड़कर सब औषधियोंका आधा सार मिलावे | इसके स्वानेसे अतीसार, कृमिरोग, वमन, अरुचि, अजीर्ण, गोला, उदरविकार, मन्दाग्नि, मुखरोग, कंठरोग, गुदारोग, मिट्टी खानेका रोग, श्वास, खांसी इन सब रोगोंको यह खांडवचूर्ण दूर करता है ॥ १ ॥
तालीसग्रंथिधान्यैर्भवरबिधकणाकृष्णजीरच्छदाम्लं सामुद्रं विश्वजीरोषणमथ रुचकं त्वक्चुटीदाडिमैस्तैः । विंशत्यष्टत्रिपञ्चैकचतुरवयवैर्भास्करोन्मन्थवालैर्गुल्मे साशर्तिका सग्रहणिजठरहृत्त्वग्गदश्लेष्मवाते ॥ १ ॥
३ - तालीसपत्र, पीपलामूल, धनियां, बिडनोन, पीपल, कालाजीरा, अमलवेत, समुद्रनोन, सोंठ, सफेदजीरा, पत्रज, कालानोन, राज, छोटी इलायची, अनारदाना, इनको क्रमसे बीस, आठ, तीन, पांच, एक और चार भाग लेवे, इसमें नींबू के रसकी भावना देवे, यह भास्कर चूर्ण गोला, बवासीर, खांसी, संग्रहणी, उदररोग, त्वयोग, कफवातके रोग इन सबको नष्ट करे ॥ १ ॥
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Aho! Shrutgyanam