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द्वितीयः ] भाषाटीकासहितः। (७९) यह चूर्ण बल, अग्नि, रुचि इनको वढावे, तापतिल्ली, वादीके रोग, वास, बवासीर, खांसी, ज्वर, वमन और हृदय कंठ जीभ इन सबके रोगोंको, नाश करता है ॥ १ ॥
त्रिजातादिचूर्ण। विजातविश्वा त्रिफला विडंगं द्राक्षा निशायुग्ममरिष्टपत्रम् । कृष्णा गुडूची मसिमेषशृंगी पुरातनाः पष्टिकतण्डुलाश्च ॥ १॥ एतानि चूर्णानि समानि कृत्वा सिता प्रदेया तदनन्तरं समा । दिनोदये चूर्णमिदं हि खादन्कुर्यान्नरः शीतरसोपहारम् ॥२॥ दणि रक्तं कुपितं च पित्तं कुष्ठाम्लपित्तं सविचर्चिपामा । विस्फोटका मण्डलकाः प्रदोषा ह्यनेकदोषाः प्रशमं प्रयान्ति ॥ ३ ॥ त्रिजातक ( तज, तमालपत्र, इलायची), सोंठ, त्रिफला, वायविडंग, दाख, हलदी, दारुहलदी, नीमके पत्ते, पीपल, गिलोय, सोयाके बीज, मेढासिंगी, पुराने सांठी चावल ये सब बराबर लेकर इन सबके समान मिश्री मिलावे और प्रातःकाल खाय, शीतल आहार करे तो दाद, रुधिरविकार, पित्तके विकार, कोढ, अम्लपित्त, खाज, खसर, विस्फोटक, चकत्ता और अनेक दोष नष्ट होवें ॥ १-३ ॥
त्रिफलादिचूर्ण। त्रिफलां बापुषं बीजं सैन्धवं च शिलाजतु । बद्धमूत्रे हितं चूर्ण नात्र कार्या विचारणा ॥१॥ त्रिफला, ककडीके बीज, सैधानोन और शिलाजीत इनका चूर्ण वद्धमूत्रवाले रोगीको हित है ॥ १ ॥
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