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(३२७)
पिंगलास्तेधिवासनप्रकरणम् ।
.॥ टीका ॥
आमेयी प्रज्वलिता।अयद्वितीयमहरे निर्मतिःकर्दमिता पश्चिमा वारुणी वायवी सौं भागिनी उत्तरासगुणा ऐशानी धगिता पूर्वाधूमिता आमया लोहिता दक्षिणा प्रज्वलिताअथ तृतीयपहरे पश्चिमा कर्दमिता वायवी वारुणी उत्तरा: सौभागिनी ऐशानी सगुणा पूर्वा धगिता आमेयोधूमितादक्षिणालोहिता नितिः प्रज्वलिता अथ चतुर्थनहरे वायवी कर्दमिता उत्तरा वारुणी ऐशानी सौभागिनी पूर्वो सगुणा आ. मेयी धगिता दक्षिणा धूमिता नितिलोहिता पश्चिमा प्रज्वलिता|अथ पंचमाहरे उत्तरा कर्दमिता ऐशानी वारुणी पूर्वा सौभागिनी आमेयी सगुणा दक्षिणा धगिता नितिधुमिता पश्चिमा लोहिता वायवी प्रज्वलिता।षष्ठपहरे ऐशानी कर्दभिता पूर्वा वारुणीआमेयी सौभागिनीदक्षिणा सगुणा निति धगिता पश्चिमाधगिता वायवी. लोहिता उत्तरा प्रज्वलिता । सप्तमप्रहरे पूर्वा कर्दमिता आमेयी वारुणी दक्षिणा सौभागिनी नितिःसगुणा पश्चिमाधगितावायवी धूमिता उत्तरा लोहिता ऐशानी प्रज्वलिता । अष्टमप्रहरे आमेयी कर्दमिता दक्षिणा वारुणी नितिः सौभागिनी पश्चिमा सगुणा वायवी धगिता उत्तरा धूमिता ऐशानी लोहिता पूर्वा प्रज्वलिता। इति शांतदीप्तदिक्प्रकरणम् । आसां गुणाः । प्रथमपहरे दक्षिणस्यों संतोष
॥ भाषा॥
हूं पूर्वकीसी नाई जाननो पृथ्वी, जल, तेज ये शांत स्वरहैं तामें तेजके दोय रूपहें शांत सहित मिलवां होय तो शांत और दीप्तकर सहित होय तो दीप्त. और वायु आकाश ये दोनों शांतस्वरहैं और शांतदीप्तभी है. जो पिंगला ऊंची सम्मुख दक्षिण गमन करे तो गति शुभ और अपने वृक्षपैते महान् वृक्षपै गमन करे तो शुभफल, और पुष्प भक्षण करती होय ताकगिति शुभा. और शांता और नीचो मुख करै वा वा ममुखकरके उडजाय तो दीप्ता. और वामगमन करे और चंचला होय तो गति दीप्ता. और ऊपरकी शाखाते नाचेकी शाखापै आय जाय वा महान्शाखापै जाय बैठे और महान् शाखापेतूं छोटीशाखापै आय बैठे तो: ये गति दीप्ता. जो कांटेके वृक्षपै जाय बैठे तो दीप्तागति जाननी ॥ इति शांतदीप्तगतिः ॥ प्रथमप्रहरमें दक्षिण दिशा कर्दमिता, नैर्ऋ. त्य दिशा वारुणी, पश्चिम सौभागिनी, वायव्य सगुणा, उत्तरा धगिता, ईशानी धूमि. ता, पूर्वा लोहिता, अग्नेयी प्रज्वलिता ॥ अथ दूसरे प्रहरमें || नैर्ऋती दिशा कर्दमिता, पश्चिमा वारुणी, वायवी सौभागिनी, उत्तरा सगुणा, ऐशानी धगिता, पूर्वा धूमिता, आग्नेयी
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