________________
(२१६) वसंतराजशाकुने-सप्तमो वर्गः। द्विषद्भये सत्यरिनाशमाह विरुद्धचेष्टास्थितियानशब्दैः ।। त्रासं च सर्व द्विषदागमोत्थं धनुर्धरी हंति धनुर्धरीव॥३८५॥ कृत्वा स्वरं यद्यपसव्यभागे सव्यं च गत्वा श्रयतिप्रदीप्तम्॥ धनुर्धरी चौर्यसमुद्यतानां तत्तस्कराणां कुरुतेऽपकारम् ॥ ॥ ३८६॥ग्रामादिघातोयमगोग्रहादिकायतिकस्थेसतितस्कराणाम् ॥ पूर्वोदितं सिद्धिविधायि तस्मादन्यादृशं स्यादसमीपगे तु ॥ ३८७ ॥ अदक्षिणां दक्षिणतो रटंती पृष्टे च तारांशकुनैकदेवीम् ॥ विपश्चितश्चौरहते गवादौ प्रत्यागमाय प्रतिपादयति ॥ ३८८ ॥
॥ टीका ॥
द्विषद्भय इति ।। द्विषद्भये सति विरुद्धचेष्टास्थितिवामशब्दैः पोदकी रिनाशमाह द्विषदागमोत्थं सर्व त्रासं पूर्वोक्तचेष्टादिभिः धनुर्धरीव हंति ॥३८५॥कृत्वेति ॥ य. दि अपसव्यभागे स्वरं कृत्वा सव्यं च भागं गत्वा प्रदीप्तमाश्रयति एवंविधा धनुर्धरी चौर्यसमुद्यतानां तस्कराणामपकारं कुरुते ॥ ३८६ ॥ ग्रामादिति ॥ ग्रामादिधातोद्यमगोग्रहादिकार्ये अंतिकस्थे समीपस्थे सति तस्कराणां पूर्वोदितं सिद्धिविधायि भवति असमीपगे तु कार्ये अन्यादृशं सिद्धिविधायि स्यात् ॥ ३८७ ॥ अदक्षिणमिति ॥ दक्षिणतो रदंतीमदक्षिणां पृष्टे च तारां शकुनैकदेवी चौरहते गवादौ वि
॥ भाषा॥
द्विषद्भय इति ॥ वैरीनके भयके प्रश्नमें श्यामा विरुद्धचेष्टा करै विरुद्धस्थानमें होय वामशब्द करै तो वैरीनको नाश करें, और वैरीकी आयबेकी सुनके हुयो जो सब त्रास ताकं नाश करै है ॥ ३८५ ॥ कृत्वेति ॥ जो जेमने भागमें शब्दकरके वामभागमें जायकरके दप्तिस्थानमें स्थित होय तो चोरीमें उद्युक्त होयरहै. तिन चौरनको अपकार करै ॥ ३८६ ॥ प्रामादिति ॥ प्रामादिक घात उद्यम गोशालादिक कार्यमें जो श्यामा पासमें स्थित होय तो चौरनकी सिद्धि करे. और जो पास नहीं होय तो कार्यमें चोरविना औरनकी सिद्धि करै ॥ ३८७ ॥ अदक्षिणामिति ॥ दक्षिणमें शब्द करती होय और वामा होय ओर पीठपीछे तारा होय तो चौर लेगयो होय गौ कू आदिले पशु तिने पीछे आयबेके लिये कहनो ॥ ३८८ ।।
Aho! Shrutgyanam