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पोदकीरुते मुखादिप्रकरणम् ।
श्यामानुकूल्याय परस्परस्य प्रदक्षिणां स्वामिसहाययोः स्यात् ॥ तयोश्च भिन्ने हृदि शंक्यमाने भेदाय तारा न पुनर्वितारा ॥ ३८२ ॥ प्रदक्षिणायां परचक्रमुग्रमायाति नायाति तदुद्धृतायाम् || स्यादक्षिणायामपि सुस्वरायां वार्तेव नवागमनं रिपूणाम् ॥ ३८३ ॥ तारा भवेत्तोरणसंनिधाने निवर्तने वामगतिस्ततश्च ॥ श्यामा यदि स्यात्पुनरेव तारा स्तोकं तदागत्य निवर्ततेऽरिः ॥ ३८४ ॥
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॥ टीका ॥
दक्षिणनादिनी वा वामा सर्वान्कामान्विनिर्हति ॥ ३८१ ॥ श्यामेति ॥ परस्परेण प्रदक्षिणा श्यामा स्वामिसहाययोरानुकूल्याय भवति तयोः स्वामिसहाययोः हृदि भिन्ने शंक्यमाने तारा भेदाय भवति पुनर्वितारा अभेदाय स्यादित्यर्थः ॥ ३८२ ॥ प्रदक्षिणायामिति ॥ परचक्रागमनपृच्छायां मुग्रं परचक्रं प्रदक्षिणायामायाति उ तायां पुनः नायाति सुस्वरायां दक्षिणायामपि वार्तेव स्यात् रिपूणां नत्वागमनम् ॥ ॥ ३८३ ॥ तारेति ॥ रिपुनिवर्तनपृच्छायां तोरणसन्निधाने तारास्यात्ततश्च निवर्तने वामगतिः यदि पुनरेव तारा स्यात्तदा स्तोकं मार्गमागत्य रिपुः निवर्तते ॥ ३८४ ॥
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॥ भाषा ॥
वा तारा होय तो वांछित अर्थकी सिद्धि होय और दुष्टचेष्टा करती होय दक्षिणमाऊं शब्द करती होय वा वामा होय तो संपूर्ण कामनकूं नाश करै ॥ ३८१ ॥ श्यामेति ॥ श्यामा परस्पर दक्षिणा होय तो स्वामी और सहायी दोनोंनके अनुकूलके अर्थ होय और स्वामी सहायीके मनमें भेदकी शंका होय. जो श्यामा तारा होय तो भेद जाननो जो वितारा होय तो अभेद जाननो ॥ २८२ ॥ प्रदक्षिणायामिति ॥ शत्रुनके चक्र के आगमन में प्रश्न होय और जो श्यामा प्रदक्षिणा आयजाय तो उग्रशत्रूनकी सेनाको आगमन कहनो. और जो उद्धृता होय तो फिर नहीं आवेगी ऐसो कहनो और सुंदरस्वर करती होय और दक्षिणा - होय तोभी कोरी वार्त्ताही जाननी और शत्रूनको आगमन नहीं होय ॥ ३८३ ॥ तारेति ॥ वैरी निवृत्त होयवेके प्रश्न में श्यामा तोरणके पास तारा होय फिर वगढ़ती बिरियां वामगति होय फिर तारा होयजाय तो बैरी मार्गमें आयकरके पीछो बगद जाय || ३८४ ॥
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