SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पोदकीरुते समप्रमहर्षप्रकरणम्। (२०९) पण्यस्य यस्योच्चरितेऽर्थवाक्ये प्रदक्षिणीभूय विहाय दीप्तम् ।। श्यामा समारोहति पादपायं महर्घता तस्य भवत्यभीष्टम् ।। ॥३६१ ॥ अदक्षिणायां शकुनैकदेव्यां समर्घतां पण्यधनं प्रयाति ॥ सा चेत्प्रदीप्तं श्रयते कथंचित्पण्यं तदानी लभते न किंचित् ॥ ३६२ ॥ प्रदक्षिणानां गणना भवेद्या भांडस्य तावद्गणमर्घमाहुः ॥ ब्रजंति तावद्गणनास्तु वामा वदंति तावद्गुणमर्चपातम् ॥ ३६३ ॥ विण्मूत्ररूक्षध्वनिकायकंपस्वपिच्छसंत्रोटनकारिणी या ॥ सा पांडवी दुर्लभमप्यवश्यं धान्यं समर्ध कुरुतेऽतिमात्रम् ॥ ३६४॥ || टीका ॥ समस्ता कृतार्थता स्यात् ॥ ३६० ॥ पण्यस्येति ॥ यस्य पण्यस्य अर्थवाश्ये उ. चारते पोदकी प्रदक्षिणीभूय दीप्तं विहाय पादपाग्रं समारोहति तस्य महर्षताअभीष्टं भवति ॥ ३६१ ॥ अदक्षिणायामिति ॥ अदक्षिणायां शकुनैकदेव्यां पण्यधनं समर्घता प्रयाति । सा चेत्प्रदीप्तं प्रदेशं श्रयते तदानीं न किंचित्पण्यं लभ्यते॥३६२॥ प्रदक्षिणानामिति ॥ या गणना प्रदक्षिणानां भवेत् तावद्गुणं भांडस्य अर्घमाहुः । तु पुनः यदि तावद्गणना वामा व्रजति तदा तावद्गुणम् अर्घपातमाहुः ॥ ३६३ ॥ विण्मूत्रति ॥ विण्मूत्ररूक्षध्वनिकायकंपस्वपिच्छसंत्रोटनकारिणी या पांडवी सा ॥ भाषा ।। जासे जानेजाय है सो ये हम कहेहैं. और या लोकमें ये जाननेसे वणिआन के घरमें कृतार्थता होयहै ॥ ३६० ॥ पण्यस्यति ॥ जा वस्तुको अर्थवाक्य उच्चारण करै फिर पो. दकी दक्षिणावर्त होयकर दीप्तस्थानकू छोड वृक्षके अग्रभागमें जाय बैठे तो वो वस्तु महँगी होय. ॥ ३६१ ॥ अदक्षिणायामिति ॥ जो वामा होय जाय तो वो वस्तु सस्ती होय. वोही जो प्रदीप्तदेशमें स्थित होय, तो महँगी भी न होय सस्तीभी नहीं होय ॥ ३६२ ॥ प्रदक्षिणानामिति ॥ दक्षिणावर्त पक्षीनके शब्दकी जितनी गणना होय तितने ही गुण वा वस्तुमें होय और वामा पोदकीको जितनी गणना होय उतनेही गुण वा वस्तुमें पात कहेहैं ॥ ३६३ ॥ विण्मूत्रति ॥ विटू मूत्र रूखो शब्द देहको कंपन अपनी पूंछको उखाडनो इन आचर Aho! Shrutgyanam
SR No.034213
Book TitleVasantraj Shakunam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantraj Bhatt, Bhanuchandra Gani
PublisherKhemraj Shrikrishnadas
Publication Year1828
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy