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पोदकीरुते शुभचेष्टाप्रकरणम्. (१२५) प्रसन्नहष्टिर्यदि सर्वदिक्षु निरीक्षते पांडविका कदाचित् ॥ लाभस्तदानी खलु सर्वदिक्षु कार्योधतानां भवति क्षणेन ॥ ॥ ६९॥ कंडयनादक्षिणपक्षभागे वदंत्यमित्रक्षयमित्रलाभौ।। पक्षं पुनर्दक्षिणमुत्क्षिपंती समुन्नति वक्ति जयं च युद्धे ॥ ॥ ७० ॥ पक्षद्वयोत्क्षेपणतो जयी प्रोत्साहमुत्साहवती बवीति ॥ चंच्चा पदा वावयवेऽपसव्ये स्पृष्टे तदंगोचितभूषणाप्तिः ॥७१॥
॥ टीका ॥
ददाति प्रीता हृष्टा सानंदेति यावत् । मुदं हर्ष यच्छति लाभदा च भवति आभिमुख्यादिष्टफलं संमुखं भवति उत्फुल्लवका विकसितवदना इष्टफलं ददाति ॥ ६८॥ प्रसत्रेति ॥ कदाचिद्यदि पांडविका देवी प्रसन्नदृष्टिः सर्वदिक्षु निरीक्षते विलोकयति तर्हि कार्योधतानां पुंसां खलु निश्चयेन सर्वदिक्षु तदानीं लाभः क्षणेन भवति ॥ ६९॥ कंडूयनादिति ॥ दक्षिणपक्षभागे कंड्यनाद्धर्षणाबुधाः अमित्रक्षयमित्रलाभौ वदंति कथयति अमित्रक्षयश्च मित्रलाभश्च अमित्रक्षयमित्रलाभावितरेतरइंदः । पुनः दक्षिणं पक्षमुरिक्षपंती ऊर्ध्वं नयंती समुन्नति वक्ति जयं च युद्धे । ॥७० ॥ पक्षेति ॥ पक्षद्वयोत्क्षेपणतः पक्षद्वितयोद्विकिरणात् जयर्डी ब्रवीति कथयति उत्साहवती प्रोत्साहं ब्रवीति चंच्वा पदा वापसव्येन वामे अवयवे स्पृष्टे तदं
॥ भाषा॥
और सन्मुख होय तो इष्ट फल सन्मुखही प्राप्त होय और प्रफुल्लित मुख होय तो इष्टफलकू देवै है ॥ ६८ ॥ प्रसन्नेति ॥ और जो पांडविका प्रसन्नदृष्टि होय, सर्व दिशानमें देखै तो कार्यवान् पुरुषनकू सर्वदिशानमें तत्क्षण लाभ होय ॥ ६९॥ कंड्रयनादिति ॥ जो पोदकी जेमनेमाऊंके पंखनकू खुजावे तो शत्रुको नाश और मित्रको लाभ जाननो और फिर जेमने पंख• ऊपर माऊकू उठायके लावे तो ऊंचे पदपै प्राप्त करै और युद्धमें जय होय ॥ ७० ॥ पक्ष इति ॥ और जो दोनों पंखनकू ऊंचे करै वा फैलाय दे तो जयकी ऋद्धि होय और उत्साहवान् होय तो उत्साह कर और चोंचकरके पावनकरके वाम अंगमें स्पर्श करें तो वा मनुष्यके अंगके उचित भूषणकी प्राप्ति होय ॥ ७१ ॥
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