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________________ ज्योतिषसारः। तीनों उत्तरा चतुर्दशी पूर्णिमा अमावास्या रविवार मंगलवार और शनिवार इनमें गमन (देशाटन ) करना नहीं ॥ २२७ ।। मध्यम प्रस्थान-- साई पुव्वा रोहिणि, सवणं चित्ता धणि सियभिसयं । चउत्थी छट्ठी अट्ठमि, नवमी बारिसी मजिवासिया ॥२२८।। भावार्थ-स्वाति तीनों पूर्वा रोहिणी श्रवण चित्रा धनिष्ठा शतभिषा चतुर्थी षष्ठी अष्टमी नवमी और द्वादशी इनमें प्रस्थान मध्यम फलदायक है ।। २२८ ॥ उत्तम प्रस्थान--- मिगसिर मूल पुणवसु, हत्था जिट्ठाइ पुक्ख अणुराहा । रेषय अस्सणि रिक्खं, वारा ससि मुक्त गुरु बुद्ध ॥२२६॥ पडिवो बिय तिय पंचमि; दसमी पगारिसि य तिरिलिया । सत्तमि जोगे गमणं, उत्तम कहियाइ विबुहे हि ॥२३०॥ भावार्थ-मृगशीर्ष मूल पुनर्वसु हस्त ज्येष्ठा पुण अनुराधा रेवतो और अश्विनी ये नक्षत्र, सोम बुध गुरु और शुक्र ये वार तथा १।२।३।५। ७ । १० । ११ । १३ ये तिथि, इन्होंके योग में गमन करना उसम हैं ऐसा विद्वानोंने कहा है ॥ दिनशुद्धि प्रन्थमें कहा है कि'पुन्वदिसि सव्व कालं, रिद्धि निमिरा विहारसमयमि। गुस्सस्सिणि मिग हत्या रेवइ सवणा गहेअन्वा ॥ १ पूर्व दिशा तरफ कोई भी समयमें धन उपार्जनके लिये जाते
SR No.034201
Book TitleJyotishsara Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1923
Total Pages98
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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