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________________ हिन्दी भाषा - टीका समेतः । ६७ भावार्थ- सूर्यास्त के बाद आकाश में एक भी तारा देख पड़े जब तक विजययोग होता है इसमें भी मांगलिक कार्य विशेतया करना अच्छा हैं ॥ २२६ ॥ प्रस्थान मुहूर्त्त विचार यात्रा मुहूर्त में यदि कार्य वशात् गमन में विलम्ब हो तो जो अपने मन की प्रिय वस्तु हो उसका प्रस्थान करना आरम्भ सिद्धि में कहा हैं कि “प्रस्थानमन्तरिह कार्मुकपञ्चाशत्याः, पाहु धनुर्दशकतः परतश्च भूत्यैः । सामान्य १ माण्डलिक २ भुमिभुजां, ३ क्रमेण, स्यात् पञ्च सप्त दश चात्र दिनानि सीमा ॥१॥" अपने घर से प्रस्थान ५०० धनुष ( २००० हाथ ) दूर पर रखना चाहिये, या १० धनुष ( ४० हाथ ) से अधिक दूर रखना मगर न्यून नहीं रखना, प्रस्थान करने बाद सामान्य लोग पांच दिन एक जगह ठहरे नहीं, मण्डलिक राजा सात दिन और महाराजा दश दिन एक जगह ठहरे नहीं, इससे अधिक दिन रह गया तो दूसरा शुभ मुहूर्त में गमन करें 11 प्रस्थान निषैध अद्द मघा असलेसा, भरणी कित्तिय विसाह उत्तरयं । चवदिसि पुन्तिम अमावस, रवि भूसनि गमण न कारई ॥२२७॥ भावार्थ - आर्द्रा मघा आश्लेषा भरणी कृत्तिका विशाखा
SR No.034201
Book TitleJyotishsara Prakrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherBhagwandas Jain
Publication Year1923
Total Pages98
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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